…फिर भी फीस बढ़ी हुई….

प्रदेश अभिभावक मंच ने कहा ही किहिमाचल प्रदेश में नया शिक्षा सत्र शुरू होने के उपरांत निजी स्कूलों के द्वारा अत्यधिक बढे हुए दर से फीस लेने का सिलसिला आरम्भ हो चुका है। पिछले दो-चार दिनों से शिमला के प्रतिष्ठित स्कूलों ने भी स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के अभिभाकों को मैसेज और व्हाट्सएप्प भेजकर बढे हुए दर से फीस जमा करने को कहना शुरू कर दिया है। यह निजी स्कूल, यह सब शिक्षा निदेशालय के पूर्व के दिशा निर्देशों एवं अभी चंद दिनों पूर्व ही शिक्षा निदेशालय द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से जारी किए गए जानकारी के उपरांत भी धड्ड़ले से ज़बर्ज़स्त बढे हुए दर से फीस की बसूली कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में संगठन में पहले भी आगाह किया था कि ये निजी स्कूलों के मालिक बिना पी. टी. ऐ. के परामर्श के फीस में कोई भी बढ़ोतरी ना करें। यदि किसी निजी स्कुल में पी. टी. ऐ. नहीं बना है तो नए सिरे से पी. टी. ऐ. बना कर ही कोई फैसला लें। जैसे कि सबको विदित है कि हर वर्ष बहुत सारे छात्र अपनी-अपनी शिक्षा पूर्ण करके स्कूल से निकल जाते हैं। उसी भांति उनके अभिभावक भी बच्चों के स्कूल से निकलने के बाद पी. टी. ऐ. सदस्य पद से स्वतः ही बाहर हो जाते हैं। और उनका कोई हित भी नहीं रह जाता है।
इस तरह इन निजी स्कूलों के मालिकों के द्वारा एकतरफ़ा फीस में बढ़ोत्तरी करना ना केवल शिक्षा निदेशालय के आदेशों का खुल्मखुल्ला उलंघन है बल्कि एक लोकप्रिय सरकार को भी चुनौती देना हैं। उपरोक्त विवरण को मध्यनज़र रखते हुए हिमाचल प्रदेश अभिभावक संघ शिमला के संज्ञान में समाचार पत्रों एवं सोशल मीडिया के माध्यम से आने के उपरांत शिमला कार्यकारिणी के सदस्य क्रमशः पवन मेहता- मीडिया प्रभारी, आचार्य सी एल शर्मा-सचिव, हरी शंकर तिवारी-सलाहकार , डॉक्टर संजय-मुख्य संरक्षक, कुलदीप सिंह -कोषध्यक्ष, जीतेन्द्र यादव-उपाध्यक्ष, श्रीमती कुसुम शर्मा , हमिंदर धौटा , रीता चौहान, प्रतिभा,
सुरेश वर्मा , हेमा राठौर, ज्ञान चन्द, अम्बिर सहजटा, प्रियंका तंवर, रमेश कुमार ठाकुर-अध्यक्ष एवं कर्यकारिणी के अन्य सदस्य एक स्वर से एक बार फिर मांग करते है कि शिमला प्रशासन , शिक्षा निदेशालय, शिक्षा मंत्री हिमाचल प्रदेश एवं लोकप्रिय मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश इस मामले में संज्ञान लें और अतिशीघ्र इन निजी स्कूलों के मालिकों को एकतरफा फीस बढ़ोत्तरी पर लगाम लगाएं जिससे अभिभावक रूपी साधारण जनता पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ से बचाया जा सके।

