सम्पादकीयसंस्कृति

असर विशेष: ज्ञान गंगा “ब्रह्मऋषि गुरु वशिष्ट “

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी की कलम से...

 

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी

राजा दशरथ के राज्य में अत्यंत प्रतिभाशाली, ज्ञानी और बुद्धिमान लोग रहते थे। उनमें से जो सबसे योग्य और कुशल थे वे उनकी सभा में उनके मंत्रीगण व सलाहकार के रूप में विराजमान रहते थे। ये सभी अपने अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ थे और उन्हीं में एक थे मुनि वशिष्ठ जो कि राजा दशरथ के कुलपुरोहित होने के साथ साथ उनके प्रमुख सलाहकार तो थे ही, बल्कि उनका स्थान एक तरह से राजा दशरथ के गुरु समान था।

. गुरु वशिष्ठ का मन पानी की तरह साफ और पवित्र था और वे राज्य के प्रति पूर्णतया समर्पित थे। उनके होठों पर सदैव एक हल्की सी मुस्कान रहती थी और वे कभी भी राजा दशरथ को कोई गलत परामर्श नहीं देते थे। गुरु वशिष्ठ को ब्रह्मऋषि का खिताब मिला हुआ था। राजा दशरथ उनकी बुद्धिमता व सयानेपन पर बहुत विशवास रखते थे। वशिष्ठ भी राजा दशरथ व उनके परिवार के साथ अत्यंत स्नेह रखते थे, विशेषतया श्रीराम के प्रति। जब मुनि विश्वामित्रने राजा दशरथ से आग्रह किया कि वे श्रीराम को उनके साथ वन में भेज दें तो राजा दशरथ प्रारंभ में मना कर रहे थे। ऐसे समय में मुनि वशिष्ठ ने राजा दशरथ को उचित परामर्श दिया जिसके फलस्वरूप राजा दशरथ श्रीराम को वन में भेजने के लिए तैयार हो गए। हालाँकि गुरु वशिष्ठ के सम्बन्ध ऋषि विश्वमित्र के साथ अच्छे नहीं थे, लेकिन वशिष्ठ को ज्ञात था कि श्रीराम व लक्ष्मण का ऋषि विश्वमित्र के साथ वन में जाना उनके हित में ही होगा। इस प्रसंग को वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार से बताया गया है। (बालकाण्ड सर्ग २१, शलोक ६,७,८)

वशिष्ठ का दशरथ को परामर्श

गुरु वशिष्ठ राजा दशरथ को संबोधित कर कहते हैं कि राजा, आप इश्वाकू वंश में पैदा हुए हैं और आप में उच्चतम कोटि की नेकी विद्यामान है। आप निशचय के पक्के हैं और अपने कथन पर हमेशा खरे उतरते रहे हैं। इसलिए आपको अपने धर्म (दिए गए वचन) के कथन पर रहना चाहिए और उसको छोड़ना नहीं चाहिए। आप रघु के वंशज हो और तीनो लोक में इस बात के लिए प्रसिद्ध हो कि आप का मन व ह्रदय दयालु है। आप अपने चरित्र के लिए जाने जाते हैं (जो कि सच का अनुकरण करता है)। आपको अधर्म का पालन (अपने वायदा तोड़ने वाला) नहीं करना चाहिए। आपने जितने भी धार्मिक रीति रिवाज़ का पालन किया है, जो कुछ भी प्रजा की भलाई के काम किये हैं, वो सभी भुला दिए जायंगे अगर आपने अपने दिए हुए वचन को भुला दिया, जिसके लिए आप पहले ही अपने आप को वचनबद्ध कर चुके हैं।

WhatsApp Image 2025-01-28 at 11.47.31 AM
WhatsApp Image 2025-01-28 at 11.47.29 AM
WhatsApp Image 2025-01-28 at 11.47.30 AM

वशिष्ट का श्रीराम को परामर्श 

जब भरत श्रीराम को मनाने हेतु वन में चले तो वे अकेले नहीं थे। उनके साथ अयोध्या नगरी के जाने माने लोग भी थे, उनकी माता कैकेयी व कौशल्या भी थी और गुरु वशिष्ट भी उनके कुलगुरु होने हेतु उनके संग थे। वन में पहुँचने उपरांत सभी ने श्रीराम को मनाने का पूर्णतया यत्न किया। गुरु वशिष्ठ ने भी श्रीराम को गुरु होने का याद दिलाते हुए उन्हें उचित परामर्श दिया, जिसे वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार से दर्शाया गया है।(अयोध्याकांडसर्ग ८३, शलोक ७,८)।

गुरु वशिष्ठ कहते है हे श्रीराम, आपके पिताश्री और आपके भाई ने आपको ऐसी प्रभुसत्ता सौंपी है, जिसका हर काँटा निकल चुका है। अपने मंत्रियों की मदद से (जो कि अत्यंत प्रसन्न हो कर आपका हर तरह से साथ देने के लिए तैयार है), सत्ता का आनंद लिए और जल्द से जल्द राजतिलक कर सिंघासन पर विराजमान हों। उत्तर दिशा, पश्चमी दिशा और दक्षिण व पूर्वी दिशा के राजा (जो कि सह्या पर्वत श्रंखला के समीप हैं) और जो किसी तरह की प्रभुसत्ता का आनंद नहीं भोग रहे हैं, तथा जितने भी घुमक्कड़ यात्री हैं, उन्हें आपकी भेंट फलस्वरूप अनगिनत हीरे जवाहारात लाने दीजिये। हे ककुस्था के वंशज, रघु के उत्तराधिकारी, एक शिक्षक, माता व पिता, उसके लिए उसी समय से पूजनिय हो जाते हैं, जिस क्षण मानव जन्म ले लेता है। एक पिता केवल बच्चे को पैदा करने व माता उसका लालन पालन का काम करती है, लेकिन एक शिक्षक उसको जीवन के उचित व अक्लमंदी के रास्ते पर डालने के लिए सही शिक्षा देने का कार्य करता है, इसलिए उसे अर्थात गुरु को, माता- पिता से भी ऊँचे दर्जे का माना जाता है. जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैं तुम्हारा ही नहीं बल्कि तुम्हारे पिता का भी एक नैतिक शिक्षक हूँ, हे शत्रुयों का नाश करने वाले। इसलिए जैसा मैं तुम्हें बता रहा हूँ, वैसा करते हुए तुम किसी गलत मार्ग पर नहीं चल रहे होगे। यहाँ पर तुम्हारी प्रजा, कुल के लोग, मित्र व तुम्हें मानने वाले राजा हैं। उनके प्रति अपना कर्तव्य निभाते हुए तुम नेकी के मार्ग से विमुख नहीं हो सकते। तुम्हें अपनी वृद्ध हो रही माता के प्रति कर्तव्य से विमुख नहीं होना चाहिए, जो कि इस समय अच्छे व्यवहार की चाह में है। उसके प्रति अपना फ़र्ज़ निभाते हुए तुम किसी भी तरह से नेकी के रास्ते से विमुख नहीं हो रहे होगे। (अयोध्या कांड सर्ग ६१, शलोक २,३,४,५,६)

Deepika Sharma

Related Articles

Back to top button
Close