

शिमला नगर निगम के भूतिया टॉयलेट्स(शौचालय):
किसी भी शहर की मूलभूत सुविधा होती है आधुनिक टॉयलेट्स, पर कहीं एक भी नजर नहीं आता।
शिमला विश्व विख्यात हिल स्टेशन तो है ही हिमाचल प्रदेश की भी राजधानी है। अब स्मार्ट सिटी की ओर अग्रसर है और जगह जगह साज सज्जा के काम देखे जा सकते हैं। किसी भी शहर की पहचान उसकी मूलभूत सुविधा से होती है जिसमें उच्च कोटि के साफ सुथरे टॉयलेट्स पहली जरूरत होते हैं। लेकिन आप यह जान देख कर चकित होंगे कि पूरे शिमला शहर, यहां तक कि शिमला के प्राइम मॉल और रिज पर एक भी ऐसा टॉयलेट नहीं जिसे आप आधुनिक या साफ सुथरा कह पाएंगे। आपको पूछने की भी आवश्यकता नहीं, दूर से ही” भीनी भीनी सुगंध” बता देगी कि टॉयलेट्स कहां है। जब कहीं जाओगे तो वहां की दीवारें, सीटें कई इंच जमी धूल गंदगी से भरी होगी, टॉयलेट्स में न साबुन, न ढंग के जग, बस पांच दस रुपए दो और चलती रखो। उप नगरों के तो हाल ही न पूछिए। छोटा शिमला टूटू आदि बड़े उदाहरण हैं। छोटा शिमला में कोई ढंग का टॉयलेट्स नहीं जहां प्रदेश की सरकार रहती है। बाजार में एक ड्रम नुमा डिब्बा गड़ा दिया गया है जिसके बाहर लाइन लगी रहती है।
अब बात भूत वाले टॉयलेट्स की। इन्हें आधुनिक सुविधा के नाम पर इ टॉयलेट्स कहते हैं। एक बढ़िया सुविधा थी पर बिना रख रखाव के, बिना मुरम्मत के गंदगी के डस्टबिन। न्यू टूटू जहां से पुराना रोड हवाघर के साथ से भीतर जाता है वहां एक इ टॉयलेट्स है। आप भीतर जाओगे तो सीधा भूत से सामना होगा। आप की चीख भी निकल सकती है। जैसे ही दरवाजा बंद होगा वह अपने आप हिलना शुरू हो जायेगा। फिर अचानक लाइट बंद, फिर चालू, फिर बंद। आप उसका वीडियो ध्यान से देख सकते हैं। नलके टूटे हुए। जहां जहां ई टॉयलेट्स लगे हैं खस्ता हाल है उनके। जिन में थोड़ा पानी है वहां आप के साथ कई कुछ घट सकता है। अचानक पानी आना शुरू हो जायेगा और थोड़ी देर में आप घुटनों तक जूते समेत भीगे होंगे। किसी के दरवाजा खोलने के लिए पैसे डालते रहो पर खुलेगा नहीं। किसी का बंद नहीं होगा। आप भीतर है तो एक आदमी को बाहर बताने के लिए रहना पड़ेगा कि आप अंदर है। यानि जितने इ टॉयलेट्स उतने “आधुनिक” अनुभव। जय हो स्मार्ट सिटी, जय हो।
क्या मॉल, रिज और अन्य उपनगरों के बाजारों में आधुनिक सुविधाओं से लैस टॉयलेट्स नहीं होने चाहिए..? कम से कम मॉल और रिज पर तो। दूसरे कई मॉल खुल चुके हैं लेकिन किसी में भी ढंग के टॉयलेट्स नहीं है। सोचिए नगर निगम, सोचिए….या सबकुछ ठेकेदारी के हवाले ही करते रहेंगे….? हम टैक्स देते हैं आपको। हक है हमारा। उसे मत छीनिए। और अपनी प्रतिष्ठा भी बचाइए।


