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कर्मचारी आंदोलन को दबाने के लिए ये फरमान, असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक व तानाशाहीपूर्ण है

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने उठाई आवाज

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भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) की राज्य कमेटी का मानना है कि सरकार द्वारा कर्मचारियों के द्वारा प्रदर्शन, घेराव, हड़ताल व कार्यों के बहिष्कार आदि को लेकर जो निर्देश जारी किये हैं यह सरकार की कर्मचारी आंदोलन को दबाने के लिए की गई असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक व तानाशाहीपूर्ण कार्यवाही है तथा पार्टी सरकार से मांग करती है कि इन तानाशाहीपूर्ण निर्देशों को तुरन्त वापिस लेकर अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करे। सरकार कर्मचारियों की जायज़ मांगो को लेकर किए जा रहे आंदोलन को दबाने के लिए इस प्रकार की तानाशाहीपूर्ण कार्यवाही रही है जिसकी पार्टी कड़ी निंदा करती है। सीपीएम कर्मचारियों के विभिन्न वर्गों के द्वारा जायज़ मांगों को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन का समर्थन करती है।

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                    भारत के संविधान के अनुछेद 19 व 21 में प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की आज़ादी तथा संगठन बनाने और संगठित होकर हड़ताल व आंदोलन का अधिकार दिया गया है। परन्तु सरकार संविधान की मूल धारणा की अवहेलना कर प्रदेश में कर्मचारियों के विभिन्न वर्गों के द्वारा अपनी जायज़ मांगों को लेकर चलाए जा रहे आंदोलनों को दबाने के लिए इस प्रकार के असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक व तानाशाहीपूर्ण निर्देश जारी कर रही है। जिससे सरकार का कर्मचारी विरोधी चेहरा उजागर हुआ है। प्रदेश में भाजपा की सरकार को बने चार वर्ष से अधिक समय हो गया है। सरकार की जनविरोधी नीतियों के चलते मजदूर, किसान, कर्मचारी, युवा, छात्र, महिला व अन्य सभी वर्ग बुरी तरह से प्रभावित है। इन चार वर्षों में सरकार किसी भी वर्ग के हित के कार्य नहीं कर पाई है तथा वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव के दौरान किये गए वायदे पूर्ण नहीं कर पाई है। जिसको लेकर सरकार की इस निराशाजनक कार्यप्रणाली से प्रदेश में सभी वर्ग सरकार की इन जनविरोधी नीतियों का विरोध कर रहें हैं और आंदोलनरत है।

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            प्रदेश में हर वर्ग का कर्मचारी जिसमें अराजपत्रित कर्मचारी, पुलिस कर्मी, डॉक्टर, नई पेंशन योजना कर्मचारी, आउटसोर्स व ठेका कर्मचारी, स्कीम वर्कर्स आदि सभी अपनी जायज़ मांगों को लेकर आंदोलनरत है। परन्तु सरकार इनकी मांगों पर अमल करने के बजाए इस प्रकार के तानाशाहीपूर्ण निर्देश जारी कर इनको डराने व इनके आंदोलन को दबाने का प्रयास कर रही है। कर्मचारी छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट में विसंगतियों को दूर करने व रिपोर्ट पंजाब की तर्ज पर लागू करने, पुरानी पेंशन योजना बहाल करने, डॉक्टर अपनी वेतन विसंगतियां व नॉन प्रैक्टिस अलाउंस में कई गई कटौती व इसे पुनः 25 प्रतिशत करने, पुलिस कर्मी अपनी वेतन पालिसी का युक्तिकरण करने, आउटसोर्स व ठेका कर्मचारी को नियमित करने तथा स्कीम व पार्ट टाइम वर्कर के लिए नीति बनाने आदि जायज़ मांगों को लेकर आंदोलन कर रही है। परन्तु सरकार इन पर कोई भी गौर नहीं कर रही है और कमिटियां गठित कर इनको टाल रही है।  

    भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में वायदा किया था कि यदि सत्ता में आती है तो पुरानी पेंशन योजना को पुनः बहाल करेगी, आउटसोर्स व पार्ट टाइम कर्मियों के लिए नीति बनाएगी, कर्मचारियों को उनका देय समय रहते दिया जाएगा तथा रिक्त पड़े पदों पर भर्ती की जाएगी। परन्तु सरकार ने इन चार वर्षों में कर्मचारियों की किसी भी मांग पर आजतक गौर नहीं किया है और सरकार के इस कर्मचारी विरोधी व वायदाखिलाफी के चलते कर्मचारियों के हर वर्ग में आक्रोश है और आंदोलनरत है। सरकार अब इन व्यापक आंदोलनों से डरकर तानाशाहीपूर्ण आदेश जारी कर इन आंदोलनों को दबाने का प्रयास कर रही है जिसमें सरकार कभी भी सफल नही होगी।

 

Deepika Sharma

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