
डॉ देवकन्या ठाकुर द्वारा लिखित चर्चित कहानी (मोहरा) को ऐक्टिव मोनाल के टिकरा बावली स्थित ऐक्टिंग स्टुडियो में ऑनलाइन व ऑफ लाईन दोनों माध्यमों में प्रस्तुत किया केहर सिंह ठाकुर के निर्देशन में संस्था के कलाकार रेवत राम की ने अपने दमदार अभिनय से देवताओं के मोहरे बनाने वाले शिल्पी नीरतू की मावदाओं और स्थितियों को जीवन्त कर दिया है।
जानें कहानी के बारे में….
कहानी मोहरा एक ऐसे शिल्पी नीरतू की है जो देवता के मोहरे बनाने के लिए एक साल के लिए देवता के भण्डार में ही रहता है और उसके साथ उसका पांच छः साल का बेटा गुड्डू भी रहता है।
नीरतू रोज नियमानुसार सुबह उठ कर भूखे पेट मोहरे बनाने का काम करता है और सिर्फ एक वक्त ही दोपहर को खाना खाता है जो देवता के कार्य का नियम है। बीच में गांव के प्रधान के हम उम्र बेटे भानू के साथ गुड्डू की दोस्ती होती है तो वे दिन दिन भर साथ खेलते हैं। एक दिन प्रधान गुड्डू को नीरतू के पास कान मरोड़ते हुए लाता है और कहता है कि समझा अपने बेटे को कि ऊँची जात के लोगों के घर के अन्दर नहीं जाते, यह तो शुक्र है कि मेरे बड़े बेटे ने देख लिया चरना यह तो मेरे घर के भीतर ही घुस जाता। गुड्डू ने अपने पिता नीरतू से पूछा कि बापू भानू के पिता ने मुझे क्यों मारा मेरी क्या गलती थी। लेकिन नीरतू अपने छः साल के बेटे को हमारे समाज की इस बिडम्बना को समझा नहीं पाता। मोहरों का काम पूरा होने पर जब देव प्रतिश्ता का कार्यक्रम हुआ तो नीरतू को मोहरों को लेकर भण्डार के अन्दर ले जाया जाता है और वह अपने हाथों से देवता की काश्ट देह में उन मोहरों को प्रतिष्ठित करता है उसके बाद उसे भण्डार की छत से रस्सीयों के सहारे नीचे उतारा जाता है और छत पर भेडू की बलि से शुद्धि की जाती है। नीरतू अब अपने ही बनाए देव रथ में लगे मोहरों को छू नहीं सकता और न ही भण्डार के भीतर जा सकता। इस बीच अपने बापू को दूबता गुड्डू भण्डार के अन्दर पहुंचता है और वहाँ उसे भानू मिलता है।


