2003 से छीनी गयी उनके बुढ़ापे की लाठी पुरानी पेंशन को केंद्र व राज्य सरकारों को बहाल करना जरूरी

हिमाचल प्रदेश जलशक्ति विभाग अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष व पेंशन बहाली सँयुक्त मोर्चा हिमाचल प्रदेश के राज्यमहामंत्री एल डी चौहान ने कहा
कि अब वक्त आ गया है कि कर्मचारियों की 2003 से छीनी गयी उनके बुढ़ापे की लाठी पुरानी पेंशन को केंद्र व राज्य सरकारों को बहाल करना
ही पड़ेगा, क्योंकि जिस नियम से एक विधायक व सांसद शपथ लेने के बाद ताउम्र उम्र मोटी पेंशन के हकदार हो जाते है और कर्मचारी 33 साल सेवा देने के बाद भी पेंशन से मरहूम दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर किये जाते है वो नियम ब्रिटिश सरकार से भी कही ज्यादा तानाशाही पूर्ण है।
एल ड़ी चौहान ने कहा कि प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री ठाकुर जयराम एक ईमानदार, साफछवि व अच्छे व्यवहार वाले मुख्यमंत्री है और हर वर्ग की बेहतरी हेतु कार्य करते है, लेकिन अफसरशाही द्वारा जानबूझकर कर्मचारियों के मुद्दों को लटकाना व मुख्यमंत्री जी को गुमराह करना एक बहुत बड़ा कारण है जो आज प्रदेश का कर्मचारी सरकार से खासा नाराज है। पेंशन बहाली सँयुक्त मोर्चा मुख्यमंत्री का ध्यान चार साल पूर्व जारी किए गए दृष्टि पत्र की तरफ ले जाना चाहता है जिसमे 4-9-14 वेतनवृद्धि पर फैंसला, पेंशन पर कमेटी का गठन करने की बात, पिछले वेतन आयोग में विसंगतियों को दूर करने जैसी बातें कही गयी थी लेकिन 4 वर्ष बीत जाने के बाद भी मोर्चा द्वारा बार-बार मांग करने पर भी उस ओर कार्यवाही न होना दुःख का विषय व कर्मचारियों में रोष का विषय है। एल ड़ी चौहान ने कहा कि NPS पर केंद्र द्वारा जारी 5 मई 2009 की अधिसूचना को प्रदेश में जल्द लागू करने बारे स्वयं माननीय मुख्यमंत्री ने मोर्चा के प्रतिनिधिमंडल को कहा था लेकिन प्रशासनिक अमले द्वारा उसको जानबूझकर लटकाना और चुपचाप खुद के लिए 11 प्रतिशत महंगाई भते की अधिसूचना जारी करना कही न कही सरकार के प्रति कर्मचारियों को भड़काने का काम कर गए। चौहान ने कहा कि मुख्यमंत्री समय रहते केंद्र की 2009 की अधिसूचना को प्रदेश में लागू करवाकर शीघ्र पुरानी पेंशन की बहाली हेतु कमेटी के माध्यम से कार्य प्रारंभ करें तथा प्रदेश के लगभग 80 हजार NPS कर्मियों हेतु पुरानी पेंशन को बहाल करवाकर इतिहास रचे।
उसके अलावा महंगाई भत्ता व छठे वेतन आयोग की सिफारिशें कर्मियों का कानूनी हक है वो हर हाल में मिलना ही है चाहे 6 महीने देरी से ही क्यों न मिले, इसलिए इसे मांग की श्रेणी से अलग रखा जाता है ।


