अरावली पर संकट: संरक्षण के दावे, खनन की आशंका और उजड़ता भविष्य
भारत की सबसे प्राचीन पहाड़ियाँ सवालों के घेरे में

असर मीडिया हाउस | विशेष रिपोर्ट
भारत की सबसे प्राचीन पहाड़ियाँ सवालों के घेरे में
अरावली पर्वतमाला एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है।
केंद्र और राज्यों के स्तर पर “संरक्षण” के दावों के बीच पर्यावरणविदों और स्थानीय समुदायों को आशंका है कि नियमों की व्याख्या बदलकर इन पहाड़ियों को खनन और रियल एस्टेट गतिविधियों के लिए खोला जा सकता है। यह विवाद केवल पहाड़ों का नहीं, बल्कि पानी, हवा और करोड़ों लोगों के भविष्य का है।
सरकार की मंशा क्या है?
सरकारी पक्ष का कहना है कि:
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अरावली का अधिकांश क्षेत्र संरक्षित रहेगा
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केवल सीमित क्षेत्रों में नियंत्रित गतिविधियों पर विचार किया जा रहा है
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बिना पर्यावरण प्रबंधन योजना के किसी नए खनन की अनुमति नहीं होगी
लेकिन आलोचकों का आरोप है कि “परिभाषा में बदलाव” और भूमि वर्गीकरण (Land Classification) के जरिए संरक्षित क्षेत्र को कागज़ों में छोटा किया जा रहा है, जिससे व्यावहारिक रूप से खनन का रास्ता खुल सकता है।
अरावली से छेड़छाड़ के पर्यावरणीय दुष्परिणाम
1. जल संकट और भूजल गिरावट
अरावली प्राकृतिक रेन-वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की तरह काम करती है।
खनन से:
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जल-रीचार्ज परतें नष्ट होती हैं
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कुएँ और हैंडपंप सूखते हैं
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दिल्ली-एनसीआर, हरियाणा और राजस्थान में जल संकट और गहराता है
2. रेगिस्तानीकरण का खतरा
अरावली थार रेगिस्तान के फैलाव को रोकने वाली प्राकृतिक दीवार है।
इसके कमजोर होने से:
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धूल भरी आँधियाँ बढ़ेंगी
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खेती योग्य भूमि बंजर हो सकती है
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तापमान में असामान्य वृद्धि होगी
3. जैव-विविधता पर हमला
अरावली क्षेत्र:
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दुर्लभ वनस्पतियों
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पक्षियों और वन्यजीवों
का आश्रय है।
खनन और कटाई से यह पारिस्थितिकी तंत्र टूटता है, जिसकी भरपाई दशकों में भी मुश्किल होती है।
4. वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य
ब्लास्टिंग और क्रशिंग से:
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PM2.5 और PM10 कण बढ़ते हैं
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दमा, फेफड़ों की बीमारी और त्वचा रोग आम होते हैं
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सबसे अधिक असर बच्चों और बुज़ुर्गों पर पड़ता है
अरावली में बसने वाले लोगों का भविष्य
स्थानीय ग्रामीण, आदिवासी और किसान समुदाय:
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विस्थापन के खतरे में हैं
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आजीविका (खेती, पशुपालन) प्रभावित हो रही है
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पुनर्वास नीतियाँ अक्सर कागज़ों तक सीमित रह जाती हैं
सरकार रोजगार का तर्क देती है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि खनन से मिलने वाला रोजगार अस्थायी होता है, जबकि पर्यावरणीय क्षति स्थायी।
गुण–दोष का निष्पक्ष मूल्यांकन
✔️ सरकार के तर्क (गुण)
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निर्माण क्षेत्र को कच्चा माल
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अल्पकालिक राजस्व और रोजगार
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“नियंत्रित खनन” का दावा
❌ वास्तविक नुकसान (दोष)
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जल संकट और रेगिस्तानीकरण
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स्वास्थ्य और सामाजिक लागत
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भविष्य की पीढ़ियों के लिए अपूरणीय क्षति
निष्कर्ष: विकास बनाम विनाश
अरावली केवल पत्थरों की श्रृंखला नहीं, बल्कि उत्तर भारत की जीवन रेखा है।
यदि विकास के नाम पर इसके प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ हुई, तो इसका खामियाजा केवल आज नहीं, आने वाली पीढ़ियाँ भी भुगतेंगी।
सवाल साफ़ है:
क्या सरकार अल्पकालिक लाभ के लिए दीर्घकालिक पर्यावरणीय सुरक्षा को दांव पर लगाएगी,
या अरावली को सच में “संरक्षित धरोहर” मानकर कठोर निर्णय लेगी?




