

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
विदुर नीति (1)
परिचय
प्रिय पाठकों, प्राचीन भारतीय विचार और दर्शन पर आधारित लेखों की अगली श्रृंखला पर आगे बढ़ने का समय आ गया है। अब तक मैंने महाभारत, वाल्मीकि रामायण, यक्ष प्रश्न, पंचतंत्र के पाठ और भृतहरि के नीति सूत्र की शिक्षाओं को कवर किया है।
इस बार मैं फिर से महाभारत में जा रहा हूं और जो किरदार मैंने चुना है उसका नाम विदुर है। जिन लोगों ने टेलीविजन धारावाहिक महाभारत देखा है, उन्हें याद होगा कि विदुर नीति को कई बार दिखाया व् बताया गया है, खासकर जब कौरव और पांडव लड़ाई के कगार पर थे। धृतराष्ट्र के साथ-साथ भीष्म पितामह ने भी विदुर को कई बार सलाह के लिए बुलाया था और यद्यपि आप उनकी बात मानते थे और उनका सम्मान करते थे, लेकिन कई कारणों और प्रतिबंधों के कारण उनकी सलाह को लागू नहीं किया जा सका।
कुरु वंश का हिस्सा होने के नाते, विदुर बहुत विद्वान, दूरदर्शी, शांतिप्रिय और हमेशा कौरवों के कल्याण का ख्याल रखने वाले थे। अपने पूरे जीवन में, विदुर ने कभी भी किसी का भी पक्ष नहीं लिया क्योंकि वे हमेशा धर्म और सभी के कल्याण के बारे में सोचते थे। चूंकि यह कहा जाता है कि वह धर्मराज के अवतार थे, हम कह सकते हैं कि वे धर्मराज की तरह ही सोचते और कार्य करते थे। इसकी अधिक सही व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है क्योंकि वह धर्मराज की तरह सोचते और कार्य करते थे, इसलिए उन्हीं के समान थे। जब भी आवश्यकता होती, वे कौरवों और पांडवों दोनों को उपयोगी और उचित सलाह देते थे। यह और बात है कि यद्यपि पांडव उनकी सलाह को हमेशा ध्यान से सुनते और उस पर अमल भी करते थे, लेकिन कौरव केवल सूना ही करते और शायद ही उस पर अमल करते। इसका एक कारण यह हो सकता है कि कौरवों और विशेषकर दुर्योधन को यह विश्वास था या उसे ऐसा लगता रहता था कि विदुर पांडवों के साथ अधिक घनिष्ठ और निकट हैं।
विदुर बुद्धिमान तो थे ही, बहुत कूटनीतिज्ञ भी थे। उनका हमेशा यह प्रयास रहता था कि कौरवों और पांडवों के बीच किसी भी प्रकार का संघर्ष या टकराव न हो। यह उनकी चतुराई और समयबद्ध ही थी कि वे काफी हद तक और ज्यादातर मौकों पर दोनों दलों को, खासकर दुर्योधन को शांत करने के लिए कोई न कोई बीच का रास्ता निकाल ही लेते थे। अंत तक उन्होंने पूरी कोशिश की कि कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध न हो और सभी को समझाने, हस्तक्षेप करने और सलाह देने की भी कोशिश की। हालाँकि उनके सभी प्रयास व्यर्थ थे लेकिन भीष्म पितामह, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य जैसे सभी बड़े दिग्गज विभिन्न अवसरों पर उनसे सलाह लेते थे। उनका मान सभी करते थे क्योंकि उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था। मैं आने वाले अध्यायों में विदुर के विचार, दर्शन और उनकी नीति साझा करूंगा। मुझे उम्मीद है कि पाठक उनकी बुद्धिमत्ता का आनंद लेंगे, समझेंगे और उसकी सराहना करेंगे। यह मेरा प्रयास है कि प्राचीन भारतीय दर्शन के छिपे हुए विचार और ज्ञान को खोजकर उसे आधुनिक समय में प्रासंगिक बनाकर लोगों के सामने रखा जाए।




