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2013 के बाद से ही प्रदेश भर में एससीए इलेक्शन पर प्रतिबंध

 

आज विश्वविद्यालय एसएफआई इकाई ने संघर्ष दिवस के रूप में मनाया और विश्वविद्यालय में उग्र प्रदर्शन किया। साथी गौरव ने 18 मार्च- संघर्ष दिवस” के मायने को समझाते हुए कहा कि आज से 8 वर्ष पूर्व 18 मार्च 2015 के दिन हिमाचल प्रदेश के तमाम कॉलेजों व विवि से लगभग 10000 छात्र अपनी मांगों को लेकर हिमाचल प्रदेश विधानसभा के समक्ष आए थे। ये तमाम छात्र पिछले 8 महीनों से लगातार अपने अपने कॉलेजों में अपनी मांगों के प्रति संघर्षरत थे। इस संघर्ष के दौरान प्रदेश सरकार द्वारा छात्र समुदाय के ऊपर अंधाधुंध हमले किये गए। प्रदेश भर में छात्रों को प्रशासन व सरकारी तंत्र द्वारा धमकाया गया। विश्वविद्यालय व शिमला शहर में छात्रों के ऊपर प्रदेश सरकार के इशारे पर पुलिस प्रशासन द्वारा 15 दिनों के अंदर 8 बार लाठीचार्ज किया गया। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में 6 महीने के लिए धारा 144 लागू की गई जिसके अंतर्गत 4 से ज़्यादा लोग एक साथ चल भी नहीं सकते थे। विवि में किसी भी तरह के धरना प्रदर्शन करने की कोई अनुमति नहीं थी। विवि को पुलिस छावनी बना दिया गया था व परिसर में पुलिस की 4 बटालियन स्थायी तौर पर बैठा दी गई थी। SFI के लगभग 150 साथियों के ऊपर ज़बरदस्ती मुकद्दमे बनाए गए। SFI के 7 छात्र नेताओं को विश्वविद्यालय से निष्कासित किया गया व 4 छात्र नेताओं को 82 दिनों के लिए जेल की सलाख़ों के पीछे डाल दिया गया। इसके बावजूद भी छात्र समुदाय अपनी मांगों पर अडिग रहा और लगातार संघर्ष के रास्ते आगे बढ़ते हुए प्रशासन व सरकार को चुनौती देता रहा। SFI ने प्रदेशभर के छात्र समुदाय के साथ मिलकर इस आंदोलन को जीतने के लिए हर तरह की कुर्बानी देते हुए बिना कोई समझौता किये तीखा संघर्ष किया। अंत में जब छात्र समुदाय की हर तरह की कोशिश के बावजूद भी प्रदेश सरकार ने छात्रों की माँगो को नहीं माना तो 2 मार्च 2015 को SFI ने राज्यभर में “छात्र अधिकार जत्था” नाम से दो जत्थे निकाले जो प्रदेश के लगभग 60 कॉलेजों से होते हुए ठीक 18 मार्च 2015 के दिन हिमाचल प्रदेश विधानसभा के बाहर पहुंचा। उस दिन हिमाचल में विधानसभा सत्र चल रहा था और पूरे प्रदेश के 68 विधायक विधानसभा में मौजूद थे। प्रदेशभर का छात्र समुदाय प्रदेश के मुख्यमंत्री व अपने अपने विधायकों से यह सवाल करना चाहते थे कि क्यों उनकी मांगों को पिछले 8 महीनों से अनसुना कर रहे हैं?

आखिर उस समय छात्रों की मुख्य मांगे क्या थी? सबसे पहले यह जानना आवश्यक है।

1. फीस वृद्धि वपिस लो।

2. प्रतिवर्ष 10% फीस वृद्धि का निर्णय वापिस लो।

3. RUSA/CBCS वापिस लो।

4. हाई पॉवर कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक करो।

5. सभी कॉलेजों में मूलभूत सुविधाएं प्रदान करो।

6. सभी कॉलेजों में अध्यापकों के रिक्त पदों को भरो।

7. RUSA से संबंधित तमाम समस्याओं का समाधान करो।

8. शिक्षा के बजट में बढ़ोतरी करो।

9. केन्द्रीय छात्र संघ के चुनाव बहाल करो।

इत्यादि।

जब छात्र इन तमाम मांगों को लेकर विधानसभा के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे तो प्रदेश सरकार ने पुलिस के माध्यम से छात्रों के ऊपर पहले पानी बरसाया, लेकिन जब छात्र अपने स्थान से पीछे नहीं हटे तो पुलिस प्रशासन ने उनके ऊपर बर्बर लाठीचार्ज किया जिस कारण लगभग 35 से 40 छात्रों को गहरी चोटें आई। 19 छात्र नेताओं को जेल की सलाखों के पीछे डाला गया। SFI के राज्य कार्यालय में जाकर वहाँ मौजूद SFI के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष कॉमरेड वी. शिवदासन को भी बुरी तरह से पीट कर जेल के अंदर डाला गया। इतना ही नहीं कार्यालय में मौजूद 65 वर्षीय वृद्ध को भी पुलिस में नहीं बख्शा व उनकी भी पिटाई की। जिन साथियों को जेल में डाल गया उनकी हवालात में रात भर पिटाई की गई। उनमें से कुछ साथी तो लगभग एक हफ्ते तक चल भी नहीं पा रहे थे। जेल में डाले गए 19 में से 6 साथियों को 52 दिनों तक जेल की सलाखों के पीछे रखा गया जिसमें SFI के तत्कालीन राज्य सचिव व राज्य अध्यक्ष भी शामिल थे।

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आज भी जब उस समय के तमाम साथियों से बातचीत होती है तो वे कहते हैं को वो हमारी ज़िंदगी का सबसे यशस्वी समय रहा था। उन्होंने इस आंदोलन में महज़ हिस्सेदारी नहीं निभाई थी अपितु इस आंदोलन को जिया था। आज भी उस दौर के तमाम साथी इस आंदोलन के प्रति अपनी भावनाओं को नहीं छुपा पाते हैं व वे लोग आज की पीढ़ी से ये उम्मीद करते हैं कि आज की पीढ़ी उसी जज़्बे के साथ इस आंदोलन को आगे बढ़ाए जिस जज़्बे के साथ उन तमाम लोगों ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया था।

 

इसके साथ साथ सह सचिव साथी संतोष ने कहा कि आज भी ज्यादा हालात सुधरे नहीं है आज भी छात्रों के सामने बहुत सी परेशानियां है।पिछले लंबे समय से रिवॉल्यूशन के रिजल्ट को लेकर लगातार प्रदेश भर में आंदोलनरत थी परंतु इसके बावजूद भी प्रशासन अभी तक आधे अधूरे परिणाम ही घोषित कर पाया है। जिसकी वजह से प्रदेशभर के अनेक छात्रों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। जो रिजल्ट घोषित भी हुए हैं उनमें ईआरपी की खामियों के चलते अनेक अनियमितताएं पाई गई है। एसएफआई ने ईआरपी सिस्टम में सुधार को लेकर भी अनेक बार प्रशासन को चेताया है परंतु प्रशासन इस ओर भी कोई सुध लेने को तैयार नहीं है।

साथ ही उन्होंने कहा कि नई सरकार के गठन होने पर हम उम्मीद लगाए बैठे थे कि इस विश्वविद्यालयों को स्थाई कुलपति मिलेगा परंतु आज 3 महीने से अधिक समय होने के बावजूद भी विश्वविद्यालय में स्थाई कुलपति की नियुक्ति नहीं की गई है । यह सरकार के इस विश्वविद्यालय के प्रति नकारात्मक रवैया को दर्शाता है। एसएफआई प्रदेश सरकार से मांग करती है कि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अंदर जल्द से जल्द स्थाई कुलपति की नियुक्ति की जाए।

एस एफ आई का मानना है कि इन सभी समस्याओं का मूल कारण छात्रों के पास अपनी समस्याओं को उठाने का मंच ना होना है। वह मंच एससीए था परंतु 2013 के बाद से ही प्रदेश भर में एससीए इलेक्शन पर प्रतिबंध लगा हुआ है। छात्रों को उनके जनवादी अधिकार से दूर रखने का काम बीजेपी तथा कांग्रेस दोनों ही सरकारों ने समान रूप से किया है। ऐसे में जब छात्र अपनी मांगों को लेकर प्रशासन के पास जाता है तो प्रशासन छात्र मांगों को गंभीरता से ना लेकर टालमटोल करने की कोशिश करता है। आज अगर इलेक्शन होते और छात्रों की अपनी एससीए होती तो छात्र प्रभावी ढंग से अपनी मांगों को सरकार व प्रशासन के पास उठा सकते थे और साथ ही मांगे ना मानने पर एससीए के बैनर तले प्रदेश भर के छात्र लामबंद होकर आंदोलन कर सकते थे। यही कारण है की सरकार चाहे कांग्रेस की हो या बीजेपी की दोनों ही छात्रों को उनके जनवादी अधिकारों से वंचित रखना चाहते हैं। इससे सरकारें प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में अपनी मनमानी बेरोकटोक करती रहेगी और छात्रों को उनकी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखने का कार्य करती रहेगी।

एसएफआई ने चेतावनी देते हुए कहा कि इन मांगों को जल्द से जल्द पूरा किया जाए। यदि छात्र मांगों को सकारात्मक रूप से सुलझाया नहीं गया तो आने वाले समय के अंदर विश्वविद्यालय के साथ साथ पूरे प्रदेश के अंदर आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जाएगी और अथॉरिटी का उग्र घेराव किया जाएगा। जिसका जिम्मेदार यूनिवर्सिटी प्रशासन तथा प्रदेश सरकार होगी।

Deepika Sharma

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