
रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
श्रुपनखा ने श्रीराम व लक्ष्मण के हाथों अपमानित होने के बाद रावण को सारा किस्सा सुनाया व साथ ही सीता के सौन्दर्य का भी खूब बखान किया। इसे सुन कर रावण सीता प्रति अत्यंतआकर्षित हो गया और उसमें सीता को पाने की इच्छा ने अपना रंग दिखाना प्रारंभ कर दिया। सीता को लुभाने हेतु उसके मन में एक योजना ने जन्म लिया और वह मरीचि को मिलने के लिए उसके पास गया। सर्वप्रथम रावण ने मरीचि को बताया कि कैसे उसके शूरवीर योधा खर व दूक्षण का वध श्रीराम ने तो किया ही, साथ ही श्रुपनखा को भी बुरी तरह से अपमानित किया। सारा किस्सा खूब नमक मिर्च लगा कर रावण ने मारीचि को बताया कि वो कैसे श्रीराम से बदला लेना चाहता है और सीता को अगवा कर लेने का प्रस्ताव मरीचि के सम्मुख रखा।
रावण को मरीचि की रूप बदल ले लेने की कला के बारे में भली भांति मालूम था, इसी लिए उसने मरीचि को यह परामर्श दिया कि वो स्वंय को स्वर्ण मृग के रूप में बदल कर सीता को लुभाये और दूर चला जाये, ताकि उसका पीछा करते हुए जब श्रीरामऔर लक्ष्मण भी दूर चले जाएँ, तो उस समय मौका ताड़ कर रावण सीता का अपहरण कर लेगा। मरीचि ने ये प्रस्ताव सुनते ही साफ़ मना कर दिया और रावण को समझाने का भी यत्न किया, क्योंकि मरीचि श्रीराम के बारे में अच्छी तरह परिचित था और एक बार पहले भी उनसे मार खा चुका था। इसलिए उसने रावण को श्रीराम के बारे में बताया तथा एक राजा के नैतिक कर्तव्यों के बारे में भी उसका ध्यान आकर्षित किया, जिसके बारे में वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार से बताया गया है।
मरीचि का राजा के नैतिक कर्तव्यों पर रावण को परामर्श ( अयोध्या कांड सर्ग ३७, शलोक २,३,७,८,९ )

ऐसे लोग मिलने अत्यन आसान होते हैं जो कि प्रिये वचन बोलते हैं। लेकिन अप्रिय वचन बोलने वाले लोग मुश्किल से ही मिल पाते हैं। क्योंकि आपने अपने राज्य में जासूस नियुक्त नहीं किये, जिससे कि आपको राज्य की पूरी सूचना मिलती रहे, औरआपने स्वंय को दुविधा में डाल लिया है। आप श्रीराम को बिलकुल भी नहीं जानते हो, जो कि अद्भुत शक्तियों के स्वामी होने कारण अत्यंत प्रभावशाली तो है ही, साथ ही देवराज इंद्र व वरुण( जल देवता) समानशक्तिशाली हैं। ऐसा राजा जो कि अनैतिक व बुरी प्रवर्ती का हो और उसे परामर्श देने वाले भी पापी हों, ऐसा शासक अपने राज्य को ही नहीं बल्कि अपने रिश्ते-नातेदार तो समाप्त करता ही है, साथ ही उसका सारा राज्य भी समाप्त हो जाता है। श्रीराम को न तो उनके पिताश्री ने ही त्यागा है, न ही उन्हों ने किसी प्रकार की सीमा का उलंघन किया है। न तो वे लालची हैं और न ही उनका व्यवहार बुरा है। उन्हों ने ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया है, जिससे क्षत्रिय धर्म का नुक्सान हुआ हो। न ही उनमें नेकी की कमी है और न ही दयालुता की, जिस को निभाते हुए वे अपनी माताश्री कौशल्या के हर्ष को ही बढ़ाते हैं। न ही वे किसी भी जीव जंतु के प्रति किसी प्रकार का निष्टुर व्यवहार रखते हैं। वे तो सभी के साथअच्छा व्यवहार ही करते हैं।
सर्ग ३८, शलोक २६ ( चाहे कोई भी स्वंय पाप न करे, लेकिन दूसरों द्वारा किये गए पापों का फल शरीफ लोगों को भोगना पड़ जाता है और वे उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जिस तरह से सापों से भरी हुए नदी में रहती हुयी मछलियाँ। सर्ग ३९, शलोक २१,२२ नेक व भोले-भाले लोग जिनका आचरण भी बहुत अच्छा होता है वे सारी आयु नेक जीवन ही व्यतीत करते हैं, वे लोग भी अपने साथियों की गलतियों के परिणाम स्वरुप नष्ट हो जाते है। इसलिए, मैं भी किसी और (रावण) की गलती के वजह से नष्ट हो जाऊँगा, हे निशाचर। आप को जो भी उचित लगता है, आप वैसा ही करें क्योंकि मैं आप के साथ नहीं चल सकता।
रावण ने भी अपनी जिद नहीं त्यागी और मरीचि के उपर लगातार दवाब डालना जारी रखा। यहाँ तक कि उसको प्रजा के एक राजा के प्रति क्या कर्तव्य होते हैं, उस बारे भी मरीचि को याद दिलाया। रावण ने मारीचि को समझाया कि उसे अपने राजा की आज्ञा का पालन करते समय अपने धर्म का पालन करना चाहिए। मारीचि ने एक बार फिर अपनी और से रावण को समझाने का यत्न किया ताकि रावण कोई भी ऐसा पग ना उठा सके जो कि उसकेव उसकी लंका के लिए घातक सिद्ध हो जाए। मारीचि के इस प्रयास को वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार से वर्णन किया गया है।
मरीचि का रावण को परामर्श ( अयोध्याकांड सर्ग ४१,शलोक ६,७,८,९,१०,११,१२,१३,१४)
हे रावण, आपके सभी मंत्रीगण वध करने के योग्य हैं,जो कि आपको रोक नहीं पा रहे हैं। वे यह भली-भांति देख रहे हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं, लेकिन फिर भी आपने उनके प्राण नहीं हरे हैं। एक ऐसा शासक जो कि पूर्णतया गलत मार्ग पर चल चुका हो, अपने मंत्रियों के माध्यम से सही मार्ग पर आ जाना चाहिए। उन्हें ऐसा करना चाहिए था, लेकिन उन्हों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है। हे निशाचर, हे विजयों के हीरे! दैव कृपा से ही मंत्रीगण सद्बुधि, ऐश्वर्य, इन्द्रिय सुख और यश प्राप्त करते हैं। लेकिन विपरीत अवस्था में हे रावण, सब कुछ निरर्थक हो जाता है। अपने स्वामी की गलती के फलस्वरूप दूसरे लोग बुरी अवस्था में पहुँच जाते हैं। नेक कार्य और प्रसिधी, इन दोनों की जड़ अत्यंत सशक्त होती है, हे विजेतायों के विजेता। इसलिए जो लोगों पर शासन करते हैं, उनकी सुरक्षा बनाये रखना बहुत ज़रूरी होता है। किसी भी राज्य का ऐसा शासक नहीं होना चाहिए जो कि निर्दयी हो व जिसको लोक नापसंद करते हों और जो बहुत शेखिखोरा हो, हे निशाचर। मंत्रीगण जो हिंसक तरीकों की वकालत करते हैं, उसके दुष्परिणाम भी साथ ही भुगतते हैं उसी तरह से जिस तरह मंद्बुधि रथ-चालक उबड़ -खाबड़ मार्ग पर रथ चलातेहुए उसे नष्ट कर देता है दयालु और नेक लोग जिन्हों नें इस दुनिया में सदैव नेक काम ही किये हैं, दूसरों के बुरे कार्यों की वजह से बर्बाद ही हुए हैं। हिंसक व क्रूर तरीके से शासन करने वाले शासक के आधीन लोग, हे रावण, कभी भी खुशहाल नहीं रहते।
मरीचि -रावण संवाद
श्रुपनखा ने श्रीराम व लक्ष्मण के हाथों अपमानित होने के बाद रावण को सारा किस्सा सुनाया व साथ ही सीता के सौन्दर्य का भी खूब बखान किया। इसे सुन कर रावण सीता प्रति अत्यंतआकर्षित हो गया और उसमें सीता को पाने की इच्छा ने अपना रंग दिखाना प्रारंभ कर दिया। सीता को लुभाने हेतु उसके मन में एक योजना ने जन्म लिया और वह मरीचि को मिलने के लिए उसके पास गया। सर्वप्रथम रावण ने मरीचि को बताया कि कैसे उसके शूरवीर योधा खर व दूक्षण का वध श्रीराम ने तो किया ही, साथ ही श्रुपनखा को भी बुरी तरह से अपमानित किया. सारा किस्सा खूब नमक मिर्च लगा कर रावण ने मारीचि को बताया कि वो कैसे श्रीराम से बदला लेना चाहता है और सीता को अगवा कर लेने का प्रस्ताव मरीचि के सम्मुख रखा। रावण को मरीचि की रूप बदल ले लेने की कला के बारे में भली भांति मालूम था, इसी लिए उसने मरीचि को यह परामर्श दिया कि वो स्वंय को स्वर्ण मृग के रूप में बदल कर सीता को लुभाये और दूर चला जाये, ताकि उसका पीछा करते हुए जब श्रीरामऔर लक्ष्मण भी दूर चले जाएँ, तो उस समय मौका ताड़ कर रावण सीता का अपहरण कर लेगा। मरीचि ने ये प्रस्ताव सुनते ही साफ़ मना कर दिया और रावण को समझाने का भी यत्न किया, क्योंकि मरीचि श्रीराम के बारे में अच्छी तरह परिचित था और एक बार पहले भी उनसे मार खा चुका था। इसलिए उसने रावण को श्रीराम के बारे में बताया तथा एक राजा के नैतिक कर्तव्यों के बारे में भी उसका ध्यान आकर्षित किया, जिसके बारे में वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार से बताया गया है।
मरीचि का राजा के नैतिक कर्तव्यों पर रावण को परामर्श ( अयोध्या कांड सर्ग ३७, शलोक २,३,७,८,९ )
ऐसे लोग मिलने अत्यन आसान होते हैं जो कि प्रिये वचन बोलते हैं. लेकिन अप्रिय वचन बोलने वाले लोग मुश्किल से ही मिल पाते हैं। क्योंकि आपने अपने राज्य में जासूस नियुक्त नहीं किये, जिससे कि आपको राज्य की पूरी सूचना मिलती रहे, औरआपने स्वंय को दुविधा में डाल लिया है। आप श्रीराम को बिलकुल भी नहीं जानते हो, जो कि अद्भुत शक्तियों के स्वामी होने कारण अत्यंत प्रभावशाली तो है ही, साथ ही देवराज इंद्र व वरुण( जल देवता) समानशक्तिशाली हैं। ऐसा राजा जो कि अनैतिक व बुरी प्रवर्ती का हो और उसे परामर्श देने वाले भी पापी हों, ऐसा शासक अपने राज्य को ही नहीं बल्कि अपने रिश्ते-नातेदार तो समाप्त करता ही है, साथ ही उसका सारा राज्य भी समाप्त हो जाता है। श्रीराम को न तो उनके पिताश्री ने ही त्यागा है, न ही उन्हों ने किसी प्रकार की सीमा का उलंघन किया है। न तो वे लालची हैं और न ही उनका व्यवहार बुरा है. उन्हों ने ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया है, जिससे क्षत्रिय धर्म का नुक्सान हुआ हो। न ही उनमें नेकी की कमी है और न ही दयालुता की, जिस को निभाते हुए वे अपनी माताश्री कौशल्या के हर्ष को ही बढ़ाते हैं। न ही वे किसी भी जीव जंतु के प्रति किसी प्रकार का निष्टुर व्यवहार रखते हैं। वे तो सभी के साथअच्छा व्यवहार ही करते हैं।
सर्ग ३८, शलोक २६ ( चाहे कोई भी स्वंय पाप न करे, लेकिन दूसरों द्वारा किये गए पापों का फल शरीफ लोगों को भोगना पड़ जाता हैऔर वे उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जिस तरह से सापों से भरी हुए नदी में रहती हुयी मछलियाँ. सर्ग ३९, शलोक २१,२२ नेक व भोले-भाले लोग जिनका आचरण भी बहुत अच्छा होता है वे सारी आयु नेक जीवन ही व्यतीत करते हैं, वे लोग भी अपने साथियों की गलतियों के परिणाम स्वरुप नष्ट हो जाते है। इसलिए, मैं भी किसी और (रावण) की गलती के वजह से नष्ट हो जाऊँगा, हे निशाचर। आप को जो भी उचित लगता है, आप वैसा ही करें क्योंकि मैं आप के साथ नहीं चल सकता।
रावण ने भी अपनी जिद नहीं त्यागी और मरीचि के उपर लगातार दवाब डालना जारी रखा। यहाँ तक कि उसको प्रजा के एक राजा के प्रति क्या कर्तव्य होते हैं, उस बारे भी मरीचि को याद दिलाया। रावण ने मारीचि को समझाया कि उसे अपने राजा की आज्ञा का पालन करते समय अपने धर्म का पालन करना चाहिए। मारीचि ने एक बार फिर अपनी और से रावण को समझाने का यत्न किया ताकि रावण कोई भी ऐसा पग ना उठा सके जो कि उसकेव उसकी लंका के लिए घातक सिद्ध हो जाए। मारीचि के इस प्रयास को वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार से वर्णन किया गया है।
मरीचि का रावण को परामर्श ( अयोध्याकांड सर्ग ४१,शलोक ६,७,८,९,१०,११,१२,१३,१४)
हे रावण, आपके सभी मंत्रीगण वध करने के योग्य हैं,जो कि आपको रोक नहीं पा रहे हैं। वे यह भली-भांति देख रहे हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं, लेकिन फिर भी आपने उनके प्राण नहीं हरे हैं। एक ऐसा शासक जो कि पूर्णतया गलत मार्ग पर चल चुका हो, अपने मंत्रियों के माध्यम से सही मार्ग पर आ जाना चाहिए। उन्हें ऐसा करना चाहिए था, लेकिन उन्हों ने ऐसा कुछ भी नहीं किया है। हे निशाचर, हे विजयों के हीरे! दैव कृपा से ही मंत्रीगण सद्बुधि, ऐश्वर्य, इन्द्रिय सुख और यश प्राप्त करते हैं। लेकिन विपरीत अवस्था में हे रावण, सब कुछ निरर्थक हो जाता है। अपने स्वामी की गलती के फलस्वरूप दूसरे लोग बुरी अवस्था में पहुँच जाते हैं। नेक कार्य और प्रसिधी, इन दोनों की जड़ अत्यंत सशक्त होती है, हे विजेतायों के विजेता। इसलिए जो लोगों पर शासन करते हैं, उनकी सुरक्षा बनाये रखना बहुत ज़रूरी होता है। किसी भी राज्य का ऐसा शासक नहीं होना चाहिए जो कि निर्दयी हो व जिसको लोक नापसंद करते हों और जो बहुत शेखिखोरा हो, हे निशाचर। मंत्रीगण जो हिंसक तरीकों की वकालत करते हैं, उसके दुष्परिणाम भी साथ ही भुगतते हैं। उसी तरह से जिस तरह मंद्बुधि रथ-चालक उबड़ -खाबड़ मार्ग पर रथ चलातेहुए उसे नष्ट कर देता है। दयालु और नेक लोग जिन्हों नें इस दुनिया में सदैव नेक काम ही किये हैं, दूसरों के बुरे कार्यों की वजह से बर्बाद ही हुए हैं। हिंसक व क्रूर तरीके से शासन करने वाले शासक के आधीन लोग, हे रावण, कभी भी खुशहाल नहीं रहते।

