विविध
हाय री..बढ़ती गर्मी,बहता पसीना …..

हाय! री
बढ़ती गर्मी,बहता पसीना ,
और बढ़ती जाए प्यास
मिल जाती तरुवर की छाया,
तुम होती अगर मेरे पास
पीपल की घनी छाया और
बड़ा सा लस्सी का गिलास
गांव के बावड़ी, कुएं ठंडे,
चित मेरा करें बहुत उदास
दो टुकड़े कमाने मैं निकला,
छोड़कर गांव का मैं प्यार
मन की धरा तपती यहां,
शहर ना आए मुझको रास
मिल जाती तरुवर की छाया
तुम होती अगर मेरे पास
अग्नि बरसे सड़के काली,
मेघ भी ना जाने क्यों हैं निराश
बूंद बूंद जल है बिकता,
बिकती जिंदगी खरीद कर स्वास
मिल जाती तरुवर की छाया
तुम होती अगर मेरे पास। धन्यवाद।। प्रेम सागर।



