संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन) में जलवायु परिवर्तन पर चर्चा

यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो में 2021 में आयोजित यूएनएफसीसी (संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन) के कॉप26 के दौरान माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित चुनौतियों का समाधान करने के लिए भारत की प्रतिबद्धताओं में ‘पंचामृत’ के पांच अमृत तत्वों को शामिल किया। निम्न प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में कृषि-वानिकी और वनों के बाहर वृक्षों के कार्यक्रम को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी– वर्तमान और 2030 के बीच कुल अनुमानित उत्सर्जन में कम से कम एक बिलियन टन की कमी; देश की कार्बन तीव्रता को 45 प्रतिशत से कम करना, 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना। केंद्रीय बजट-2022 चार हस्तक्षेपों में से एक के रूप में कृषि-वानिकी पर विशेष जोर देता है 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में अतिरिक्त 2.5 से 3 बिलियन टन कमी लाने के एनडीसी लक्ष्य और अन्य राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय लक्ष्यों को पूरा करने से संबंधित “जलवायु कार्य-योजना” रोडमैप, दूरदर्शी नेतृत्व की गंभीरता को दर्शाता है। इन लक्ष्यों में प्रमुख हैं- जैव विविधता संरक्षण, भूमि क्षरण तटस्थता (एलडीएन), जैव विविधता सम्मलेन (सीबीडी) के अंतर्गत सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी), संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण प्रतिरोधक सम्मलेन (यूएनसीसीडी) आदि। 2019 में भारत में आयोजित यूएनसीसीडी कॉप-14 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बॉन चुनौती-प्राकृतिक परिदृश्य पुनर्स्थापना के तहत 21 एमएचए की घोषणा की थी, इसे कॉप26 में बढ़ाकर 2030 तक 26 एमएचए करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, जो किसी भी देश द्वारा लिया गया सबसे बड़ा संकल्प है। इन प्रतिबद्धताओं और लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कृषि-वानिकी और वनों के बाहर वृक्षों (टीओएफ) की क्षमता का बेहतर उपयोग करने की आवश्यकता है। कृषि-वानिकी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, विशेष रूप से कार्बन अवशोषण के जरिये कार्बन में कमी लाने के प्रावधान का विस्तार करती है और समावेशी आर्थिक अवसरों में वृद्धि करती है। कृषि-वानिकी और टीओएफ, ईंधन की लकड़ी तथा अन्य लकड़ी-उत्पाद की जरूरतों को पूरा करके प्राकृतिक वनों पर पड़नेवाले दबाव को कम करते हैं।
कृषि-वानिकी और टीओएफ में निजी भूमि एवं खेतों में उगने वाले पेड़; शहरी क्षेत्रों में तथा सड़कों, रेलवे लाइनों व नहरों के किनारों के वृक्ष; औद्योगिक क्षेत्रों में और उसके आस-पास के वृक्षारोपण; कृषि योग्य भूमि की हवा, क्षरण आदि से सुरक्षा के लिए लगाये जाने वाले पंक्तिबद्ध पेड़ और सरकार एवं अन्य संस्थानों की भूमि में लगे पेड़ आदि शामिल हैं। खेतों और अन्य निजी भूमि पर टीओएफ, किसानों को इमारती लकड़ी, ईंधन की लकड़ी, फलों और अन्य उत्पादों से आय और आजीविका प्रदान करते हैं। ये टीओएफ भारत सहित विभिन्न विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अतिरिक्त, टीओएफ सांस्कृतिक, सामाजिक और पारितंत्र कार्यों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण हैं, जो मानव आजीविका के लिए जरूरी हैं। टीओएफ कार्बन को अवशोषित करते हैं, मिट्टी को स्थिर करते हैं, पानी और हवा को साफ़ करते हैं, जल प्रवाह को नियंत्रित करते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र से जुड़े अन्य कार्य करते हैं। जब पेड़ सड़कों और नहरों के किनारे, संस्थागत क्षेत्रों में या शहरी क्षेत्रों में लगाए जाते हैं, तो टीओएफ छोटे क्षेत्र की जलवायु को बेहतर बनाते हैं, छाया प्रदान करते हैं, कुछ वायु प्रदूषकों को अवशोषित करते हैं, हरे-भरे स्थानों को सुशोभित करते हैं, पक्षियों और अन्य छोटे जीवों के लिए घोंसला और आवास प्रदान करते हैं, स्टॉर्म-वाटर को विनियमित करने में मदद करते हैं और मानव कल्याण में योगदान देते हैं।
हरियाणा राज्य ने प्रदर्शित किया है कि वन और प्राकृतिक संसाधनों की कमी वाला राज्य, जहां वन क्षेत्र के अंतर्गत केवल 3.5 प्रतिशत भूमि है और 80 प्रतिशत भूमि कृषि के तहत है, देश की खाद्य सुरक्षा और लकड़ी की सुरक्षा का समर्थन कर सकता है। यह मुख्य रूप से कृषि-वानिकी के अनुकूल नीतियों को बढ़ावा देने और वनों के बाहर पेड़ लगाने के लिए वृक्षारोपण अभियानों को प्रोत्साहित करने के कारण है। लकड़ी आधारित उद्योगों के लिए निवेशक और उद्योग के अनुकूल वातावरण, मुख्य रूप से खेत से लकड़ी की आपूर्ति और किसानों को यूकेलिप्टस और पॉपलर जैसे उच्च उत्पादकता एवं अल्प-अवधि रोपण वाले पौधों की उपलब्धता आदि ने यमुनानगर जिले को देश की प्लाईवुड राजधानी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। क्लोनल यूकेलिप्टस और पॉपलर के पेड़ों की कटाई की अवधि मात्र 4-6 साल की होती है। किसानों की आय में कृषि फसलों के साथ लकड़ी के उत्पादन से वृद्धि होती है। इसके अलावा, कृषि-वानिकी; सूखा, ओले, अत्यधिक तापमान, वर्षा या अन्य कारणों से फसल खराब होने की स्थिति में पेड़ों से होने वाली आय के माध्यम से आर्थिक सुरक्षा भी सुनिश्चित करती है। मजबूत औपचारिक और अनौपचारिक बाजार सहयोग, विपणन एजेंसियां और उत्पादकों, उद्योगों, उपभोक्ताओं और अंतिम उपयोगकर्ताओं को जोड़ने वाली मूल्य श्रृंखला भी विकसित हुई है। राज्य में करीब 350 प्लाईवुड इकाइयां हैं। यमुनानगर वुड मार्केट भारत के प्लाईवुड उत्पादन में 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है। अनुमान है कि कृषि भूमि से प्राप्त 2500 से 3000 करोड़ रुपये मूल्य की लकड़ी का कारोबार यमुनानगर और आसपास के क्षेत्रों में होता है। प्लाईवुड, पार्टिकल बोर्ड, पोल आदि के रूप में लगभग 6500 से 8000 करोड़ रुपये मूल्य की तैयार और मूल्यवर्धित लकड़ी के उत्पादों ने क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अनुमान है कि लकड़ी की कटाई, विपणन और उत्पादन से संबंधित गतिविधियों में सालाना लगभग 0.1 मिलियन लोगों को रोजगार मिलता हैं


