

मेजर जनरल ए के शोरी ( रिटायर्ड)
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वनवास के दिनों में एक दिन श्री राम, सीता व लक्ष्मण संग चित्रकूट की पहाड़ियों पर बैठे हुए विश्राम कर रहे थे कि अचानक उन्होंने दूर अत्यंत शोर के साथ बहुत धूल मिट्टी उठती हुयी देखी। उन्होंने लक्ष्मण को थोड़ा आगे जाकर पता लगाने के लिय कहा, लक्ष्मण गए और एक पेड़ के ऊपर चढ़ गये ताकि अच्छी तरह से देख सकें कि इस शोर व गुब्बार का कारण क्या है।

उन्होंने देखा कि एक काफी बड़ी सेना उनकी ओर आ रही है। उनको ऐसा लगा कि भरत सेना ले कर उन पर हमला करने आ रहे हैं ताकि श्रीराम व उनको समाप्त करके अयोध्या पर अपना आधिपत्य सुरक्षित कर ले। उन्होंने श्रीराम को अपने मन का संशय बताया। श्रीराम ने उनको समझाया और शांत रहने के लिय कहा। कुछ समय बाद वह सेना जिसके आगे भरत थे, समीप आ गयी।

भरत श्रीराम की कुटिया पहुंचे तो वे श्रीराम को देखते ही विलाप करते हुए उनके चरणों में गिर पड़े। श्रीराम ने उनको उठा कर ह्रदय से लगाया और शांत किया और अपने माता-पिता व अयोध्या नगरी की समस्त प्रजा का कुशल मंगल जाना। उसके बाद, श्रीराम ने भरत से अनेकों प्रश्न किय व अपने विचार उनको बताये।
इस का उल्लेख वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड के सौवें सर्ग के अनेकों श्लोकों में किया गया है जो कि मात्र प्रश्न नहीं है बल्कि सुशासन के सिद्धांत हैं जिन पर राम-राज्य की नींव रखी गयी है। आईय जानने का प्रयत्न करते हैं कि रामराज्य के सुशासन के सिद्धांत क्या थे।
● मंत्रिपरिषद :-
श्रीराम भरत से पूछते हैं कि मुझे आशा है कि तुमने अपने मंत्रिपरिषद में ऐसे लोगों को अपना मंत्री नियुक्त किया है जो कि तुम्हारी तरह ही वीर व ज्ञानी होने के साथ स्वंय की इन्द्रियों को काबू रखने वाले हैं। साथ ही, वे अच्छे खानदान से सम्बन्ध रखते है और उनको इशारों व चिन्हों की भाषा आती है। भरत, याद रहे कि एक राजा के विजयी होने के लिय उसके मंत्रिपरिषद में ऐसे मंत्रियों का होना अत्यंत आवश्यक है जो कि राज्य के भेद सुरक्षित रखे और जिसने राजनीति शास्त्र का गहन अध्ययन किया हो।भरत, इस बात का विशेष ध्यान रखना कि राज्य के रहस्य मंत्रियों को अपनी जान से भी अधिक सुरक्षित रखने होते हैं और यह विजय में सहायक होते हैं। मुझे आशा है कि तुम कोई भी निर्णय अकेले नहीं लेते हो, न ही बहुत अधिक लोगों से परामर्श भी करते हो। आशा है कि तुम जो भी योजनायें बनाते हो उन को लागू करने हेतु लिय गये निर्णय पहले ही प्रजा को मालूम तो नहीं हो जाते। इस बात का विशेष ध्यान रहे कि तुम्हारी मंत्रियों के साथ की गयी सलाह-मशविरे की बातें सुनी सुनायी बातों की तरह लोगों को नहीं पता लगनी चाहिए, लेकिन औरों द्वारा की गयी कैसी भी चर्चा व बातें हों, तुम्हारे व मंत्रियों के पास अवश्य पहुचनी चाहिए।

● मंत्रियों का चयन :-
भरत, ख्याल रहे कि सैंकड़ों बेवकूफों के मुकाबले एक ज्ञानी मंत्री का होना सदैव फलदायक होता है। एक मंत्री जो कि चतुर, ज्ञानी, वीर व राजनीति शास्त्र में निपुण हो, वो अनेकों बेवकूफ मंत्रियों से अच्छा है विशेषकर अगर कभी राज्य में किसी तरह का वित्तीय संकट आ जाय। अगर किसी राजा के पास अनगिनित सलाहकार हों और वे बेवकूफ हो, तो समय आने पर उनसे किसी प्रकार की उम्मीद नही रखी जा सकती।मुझे आशा है कि तुमने उच्च कोटि के मंत्रियों को महत्वपूर्ण कार्य ही सौपें होंगे जिन्होंने सभी तरह की परीक्षा पास कर स्वं को तुम्हारे प्रति अपनी पूर्ण वफादारी दिखाई होगी। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हारे मंत्रियों के कठोर शासन से प्रजा त्रस्त है और तुम्हारे मंत्रियों के प्रति उनके मन में नाराजगी रहती है? भरत याद रहे, जो राजा i) ऐसे चिकिस्तिक से छुटकारा नहीं पाता जो रोग मिटाने के बजाए उसे बड़ा रहा हो।
ii ) ऐसे सेवक से पीछा नहीं छुडा पाता जो अपने स्वामी की प्रतिष्ठा पर दाग लगा रहा हो ।
iii) ऐसे योधा को दूर नहीं रख पा रहा जो कि सत्ता का अभिलाषी हो जाय, ऐसा राजा इन के द्वारा मारा जाता है। इसलिय सावधान रहना।
भरत, तुम्हारा सेनापति वीर, प्रतिभावान, चरित्रवान,उच्च कुल मे जन्मा व तुम्हारे प्रति निष्ठावान होना चाहिय। क्या तुम्हारे पास ऐसे ही अस्त्र-शस्त्र में निपुण सिपहसलार हैं और तुम उनको पूर्ण आदर से रखते हो? तुम्हारी सेना में जितने भी वीर योधा हैं, जिन्होंने अपने युद्ध कौशल व वीरता का परिचय बखूबी दिया है, क्या तुम उनको प्यार व सम्मान से रखते हो?
ऐसे में मन में यह प्रश्न आता है कि क्या वर्तमान मे, हम इन सिधान्तों की पालना होते देखते हैं? क्या मंत्रिपरिषद का चयन गुणों पर होता है? क्या चरित्र, नैतिकता, देश व प्रजा के प्रति समर्पण को आधार माना जाता है ? क्या राम राज्य के इन सिधान्तों के बारे हमें जानकारी भी है? यह प्रश्न हमें स्वंय से करना होगा।


