आतंकी बंदरों के साये में “पहाड़ों की रानी “

शिमला में बंदरों का आतंक एक वास्तविक और चिंताजनक समस्या बन चुका है सबसे पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि बंदर आतंकी क्यों हो गए हैंl सबसे बड़ा कारण यह हैं की प्राकृतिक आवास की कभी जंगलों की कटाई और शहरीकरण के कारण बंदरों का प्राकृतिक आवास खत्म हो गया है l भोजन की कमी के कारण शहर और बस्तियों की तरफ आ जाते हैं l नई कॉलोनी, अपार्टमेंट और मार्केट बनते जा रहे हैं जिससे बंदरों का इलाका काम होता जा रहा है l शिमला के उपनगर टूटीकंडी में तो बंदरों के आतंक ने लोगों को काफी परेशान कर रखा है l
यहाँ के स्थानीय निवासी वंदना का कहना हैं कि बंदरों का इतना आतंक है कि बच्चों को स्कूल से लाने के लिए 103 टनल तक कैसे पहुंच जाए, टूटीकंडी से 103 टनल तक सारे रास्तों पर बंदरों का ही राज हैl
ए० जी० ऑफिस में कार्यरत महिला उपासना ठाकुर का कहना है कि बंदर गाड़ियों की छतों को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं l घर से बाहर निकलना और ऑफिस जाना मुश्किल लगता है l बंदर कपड़ो को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं l
ए०जी० कॉलोनी के प्रधान अरुण पारीक का कहना है कि बंदरों को खाने की चीजे देनी भी है तो दूर दराज के जंगलों में दी जाए l बच्चों को सुबह स्कूल छोड़ना मुश्किल हो जाता है सारे रास्ते में बंदर ही बंदर नजर आते हैं l उनका यह कहना हैं की प्रशासन को इस विषय पर ठोस कदम उठाने चाहिए l
स्थानीय निवासी te:/k lkQh ज़म्रुधा मुबारक का कहना है कि हम इनसे डर रहे हैं या यह हमसे जब हमने ही उनकी आवास छीन लिए हैं तो यह आतंकी बनेंगे ही l अब यह जानने की कोशिश करते हैं की डॉक्टर्स की क्या राय हैं l
स्थानीय निवासी अभय ठाकुर का कहना हैं की सुबह के समय तो दो पहिया वाहन पर चलना मुश्किल हो जाता हैं l आतंकी बंदर नुकसान पहुचने की कोशिश करते हैं l
डॉक्टर का कहना है कि आईजीएमसी और दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में रोजाना 8 से 10 बंदरों के काटे जाने के मामले पहुंचते हैं l जिनसे महिलाएं और बच्चे ज्यादा शामिल है l आंकड़ों के मुताबिक पिछले 5 वर्षों में 6,206 लोग बंदरों के हमलों से घायल हुए हैं l उच्च न्यायालय ने विशेषज्ञ से रिपोर्ट मांगी, पर अभी तक कोई ठोस कायर्वाही नहीं ? हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने शिमला नगर निगम, वन विभाग, अन्य विशेषज्ञों से रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है, उन्हें एनिमल वेलफेयर बोर्ड और वैटनरी विज्ञान विभागों से समाधान सुझाने के निर्देश दिए हैं l वन विभाग द्वारा बंदरों की नसबंदी पर क्या क्या कार्य किये गए हैं, यह जानना भी जरुरी हैं l
राज्य ने विभिन्न मंकी सेंट्रलाइजेशन केंद्र बनाए जा रहे हैं जैसे की टूटी–कंडी शिमला, सास्तर हमीरपुर, कांगड़ा, उन्ना आदि में नर व मादा बंदरों की नसबंदी की जा रही है l अब तक लगभग 1,86,448 बंदरों को नसबंद की जा चुका हैl नसबंदी अभियान 2006 – 07 से शुरू हुआ था l रेडियो, टीवी, पोस्टर, पंचायती संस्थाओं, स्कूल, कॉलेज, एनजीओ के सहयोग से यह जागरूकता अभियान चलाए गए हैं l
वाइल्ड लाग इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया से बंदरों के व्यवहार और जनसंख्या पर अध्ययन करने का अनुरोध किया गया है l जुलाई 2023 में उच्च न्यायालय की सुनवाई के बाद सरकार ने एक्सपर्ट कमेटी गठित की जिसमें कृषि विश्वविद्यालय, खेती, पशुपालन, वन पशु चिकित्सा विशेषज्ञ शामिल रहे, ताकि बंदर और कुत्तों की समस्या का दीर्घकालिक और वैज्ञानिक समाधान निकाला जा सके l
बंदरों का आतंक एक मानव निर्मित समस्या है l जिस जागरूकता, सही नीतियों और मानक मानव विकास के साथ–साथ प्राकृतिक के संरक्षण से ही नियंत्रित किया जा सकता है l जब तक हम उनके प्राकृतिक आवासों की रक्षा नहीं करेंगे, तब तक यह समस्या बनी रहेगीl
असर न्यूज़ से डिम्पल की रिपोर्ट



