सम्पादकीय

असर संपादकीय: शिक्षक शिक्षा का धर्म अपनाएँ

डॉ. निधि शर्मा (स्वतंत्र लेखिका) की कलम से

 

शिक्षक का काम विद्यार्थियों को सिर्फ पाठ्यक्रम पढ़ाना ही नही, बल्कि उनको शारीरिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक विकास के लिए कार्य करना भी है । अभी हाल में ही दो घटनाओं ने अध्यापक के रोल पर प्रश्न चिन्ह लगा दिए, जिसमें उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक स्कूल शिक्षिका ने छात्रों से कक्षा के अंदर एक मुस्लिम बच्चे को थप्पड़ मारने को कहा गया था। वहीं दूसरे घटनाक्रम में कश्मीर में कठुआ जिले के एक सरकारी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक ने छात्र की इस बात पर जमकर पिटाई कर दी कि उसने ब्लैक बोर्ड पर जय श्री राम लिखा था। जब शिक्षा के क्षेत्र में धर्म, व जाति के नाम पर शिक्षकों के द्वारा विद्यार्थियों को जाँचा व परखा जाएगा तो सोचिए समाज में कैसी पीढ़ी- लिखी युवा पीढ़ी जन्म लेगी ?

 

वैसे भी वर्तमान में युवा पीढ़ी के मन में ऐसे घृणित बीच बोए जा रहे हैं जिनसे बनने वाला पौधा किसी भी हाल में खुशहाल समाज की नींव नहीं रख सकता। छोटी छोटी बातों पर युवाओं का दो गुटों के बीच मन -मुटाव का रूप लेकर हिंसक हो जाना या किसी भी राय प्रभावित करने वाले ग्रुप के बहकावे में आकर तर्कहीन विचार का अनुसरण करना आम हो गया है। इस परिस्थिति में

 

विद्यार्थियों के मानसिक विकास में एक अध्यापक की बहुत बड़ी भूमिका होती है । लेकिन अगर अध्यापक का रोल ही तर्कसंगत न हो तो समाज किससे आशा करेगा? सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सोशल मीडिया के अधिक प्रसार से पहले बच्चा अपनी माँ के बाद शिक्षक से ही ज्ञान प्राप्त करते थे। लेकिन इंटरनेट आधारित विभिन्न माध्यमों के प्रचार-प्रसार के कारण विद्यार्थियों की निर्भरता उन पर अधिक हो गई है। सूचना की अधिकता के कारण स्टूडेंटस के मन में बढ़ती शंका ने ही कई समस्याओं को जन्म दे दिया है। इस बिंदु को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ तर्कसंगत शिक्षण की ओर भी ध्यान देना पड़ेगा। अध्यापकों को यह समझना पड़ेगा कि आज को उस युवा पीढ़ी को शिक्षित कर रही है जो तकनीक के माध्यम से सोचती, समझती और संचालित होती है ।

WhatsApp Image 2025-08-08 at 2.49.37 PM

[: इस पीढ़ी में क्रिटिकल सोच को विकसित करने की जिम्मेदारी शिक्षकों पर है । ताकि उनकी ऊर्जा को सही दिशा में लगाया जा सके ।

 

शिक्षा के क्षेत्र में प्रेरणा व रूची का सिद्धांत बहुत कारगर है क्योंकि वर्तमान में विभिन्न क्रिया-कलापों से बच्चों और उनके माता-पिता पर गौर ज़रूरी बोझ डाला जा रहा है जबकि ज़रूरी है कि बचपन से ही उनकी रुचि को समझकर अध्यापक उन्हें उसे प्राप्त करने के लिए प्रेरित करे ताकि उसकी रुचि को सही दिशा में लगाकर उसकी मंजिल तक पहुँचाया जा सके। शिक्षकों को चाहिए कि स्टूटेंडस की व्यक्तिगत विभिन्नताओं की जानकारी से लेकर शिक्षण कार्य करे।

ताकि शिक्षा में कम होत रुचि वाले बच्चों की भागीदारी को बढ़ाया जा सके । आज सबसे बड़ी चुनौती बच्चों के मानसिक विकास को गति देने की है क्योंकि दिखावटी क्रियाकलापों से उनकी अपनी रुचि, सोच व विचार अध्याधिक प्रभावित हो रहा है । जिसके कारण अधिक दबाव महसूस होने से वो या तो आत्महत्या कर रहे हैं या हिंसक हो रहे हैं। इसके लिए भी अप्रत्यक्ष तौर पर माता-पिता के बाद अध्यापक ही जिम्मेवार है। इसलिए जरूरी है कि भागीदारी पूर्ण शिक्षा पद्धति को अपनाया जाए ताकि न उस पर अध्यापक हावी हो और न ही विद्यार्थी क्योंकि एक तरफ शिक्षा पद्धति से स्टूडेंट्स और अध्यापकों दोनों का ही नुकसान होता है। अध्यापक अपने विचार, अनुभवों और क्रियाओं को स्टूडेंटस पर थोपने की कोशिश करते हैं जो वर्तमान में हो रही घटनाओं को जन्म देती है और वहीं दूसरी तरफ छात्र स्वयं को सर्वोपरि समझने लगते हैं जिसके कारण ध्यापकों के प्रति आदर का भाव लगातार गिर रहा है। इसलिए ये समझना होगा कि नई शिक्षा नीतियों से शिक्षा के स्तर में तो बदलाव लगाया जा सकता है परंतु शिक्षक व स्टूडेंट्स के गिरते स्तर में बदलाव आपसी भागीदारी व तर्कशीलता से ही लाया जा सकता है ।

Deepika Sharma

Related Articles

Back to top button
Close