सम्पादकीय

असर संपादकीय: महिला अधिकारों के लिए जनसंख्या नियंत्रण ज़रूरी

विश्व जनसंख्या दिवस विशेष ) डॉ निधि की कलम से

 

संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 1989 से हर वर्ष 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है । वर्ष 1990 में पहली बार वैश्विक स्तर पर 90 से अधिक देशों ने जनसंख्या नियंत्रण के प्रति जागरूक करने के लिए इसे मनाया था। हर वर्ष की तरह इस बार भी एक महत्वपूर्ण थीम के साथ हाउ टू सेफगार्ड हेल्थ एंड राइट्स ऑफ वूमन एण्ड गलर्स विषय को ध्यान में रखते हुए विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जा रहा है क्योंकि बढ़ती जनसंख्या का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव प्रकृति एवं महिलाओं पर ही पड़ता है। जनसंख्या में पहले पायदान पर विराजमान भारत जैसे देश में बढ़ती जनसंख्या के कारण आर्थिक व सामाजिक असमानता, बेरोजगारी और अपराध विशेषकर महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कारण माना जा सकता है। अभी हाल में ही संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या फंड द्वारा स्टेट ऑफ वलर्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जनसंख्या लगभग 1.428 मिलियन हो गई है जिसका मुख्य कारण प्रजनन दर में कमी जो मात्र 2.0 और मृत्युदर में कमी, जो 1000 प्रति एक पर 7.4 रह गई है जो वर्ष 1950 से 22.2 थी हालांकि इसमें मुख्य बात यह है कि भारत जैसे विविधता पूर्ण देश में विभिन्न धर्म एवं विभिन्न जातियां है और जिस धर्म व जाति में शिक्षा की दर कम है विशेषकर महिला वर्ग में, उसमें जनसंख्या वृद्धि अन्य के मुकाबले ज्यादा है। ऐसे में इस विशेष वर्ग में लिंग असमानता और गरीबी के कारण आबादी तो बढ़ ही रही है और उसके साथ अपराध, नशा व भिन्न जीवन स्तर में बी बेतहाशा वृद्धि हो रही है ।

 

गौर करने वाली बात यह है कि भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसने 1952 में ही परिवार नियोजन को अपना लिया था। लेकिन परिवार नियोजन का मॉडल कानूनी तौर पर लागू

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[11/07, 12:43] Suman 3 Nov: नहीं किया गया। वहीं दूसरी तरफ वर्ष 1996 में हमारे देश में पॉपुलेशन का काहिरा मॉडल अपनाया गया है जिसके तहत छोटे परिवार का मॉडल किसी भी परिवार पर थोपा नहीं जा सकता बल्कि उनकी इच्छा से छोटा परिवार अपनाने पर बल दिया जाता है। लेकिन हमारे देश का अनुभव यह कहता है कि राजनैतिक, धार्मिक व सामाजिक नेताओं की इच्छा शक्ति की कमी के कारण बेलगाम होती जनसंख्या शिक्षित वर्ग के लिए भी चुनौती बनती जा रही है। इसका सबसे ज्यादा खामियाज़ा शिक्षित व अशिक्षित महिला वर्ग को भुगताना पड़ता है क्योंकि हमारे समाज में परिवार का मुखिया पुरुष ही होते हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक 50 प्रतिशत गर्भ अनचाहे होते हैं जो परिवार के दवाब में जनसंख्या में तबदील हो जाते हैं। इस संदर्भ में जनसंख्या नियंत्रण का कानून बहुत ज़रूरी हो जाता है। हमारे देश में कानून बनने से ही काफी हद तक समस्याएँ नियंत्रित की जा सकती है क्योंकि यहाँ समाज के विभिन्न वर्गों की इच्छाशक्ति स्वयं तक ही टिक जाती है। चाहे पर्यावरण पर नकारात्मक असर पड़े, चाहे संसाधन अगली पीढ़ी के लिए न बचे, चाहे गरीबी, कुपोषण व महामारियों से आस-पास का कोई अपना ही मर जाए, लेकिन अपने धर्म व जाति की रफतार तेजी से बढ़नी चाहिए उसके लिए कानूनी तौर पर विवाह की आज्ञा दी ही गई है।

 

हालांकि अन्य पहलू यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र की ही रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में 15- 64 वर्ष के बीच 68 प्रतिशत आबादी है जो युवा एवं कार्यशील है इसलिए भारत दुनिया का सबसे युवा देश है एवं जनसंख्या में नम्बर वन होने के कारण यूनाइटेड नेशन सिक्योरटी कांउसिल में स्थायी सदस्यता का दावा भी करता है। लेकिन जनसांख्यिकी लाभ को कैसे देश के विकास में लाया जाए, इसके लिए सरकार को दूरदर्शी मॉडल पर काम करना चाहिए। बेशक सरकार ने कुशल जनशक्ति के लिए कुशल भारत, मेक इन इण्डिया जैसी कई विभिन्न योजनाओं पर काम किया हो लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनके क्रियान् वयन में बहुत काम बाकी है । इसलिए जनसंख्या की लाभ व हानि का गुणाभाग उसके उचित उपयोग करने पर ही निर्भर करता है । बाकि हर बात सिर्फ सरकार पर ही नहीं थोपी जा सकती हालांकि उत्तर प्रदेश जैसे राज्य ने 11 जुलाई 2021 को नई जनसंख्या नीति अपने राज्य में लागू कर दी है और इसकी सफलता समाज की भागीदारी के बिना पूरी नही हो सकती क्योंकि यह समस्या हमारी आने वाली पीढ़ी को प्रभावित करेगी ।

Deepika Sharma

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