विशेषसम्पादकीय

असर संपादकीय: स्वस्थ्य समाज की शपथ लें

- डॉ. निधि शर्मा (स्वतंत्र लेखिका) की कलम से..

 

नए साल का आगाज़ देश में कोरोना के फिर से आने का संकेत दे रहा है । लेकिन हमें ये संकेत मीडिया द्वारा दिखाई जा रही कवरेज़ और सरकार द्वारा तैयार होने के आहवान से ही सचेत होने पर मजबूर करता है। अगर हम ज़ोर देकर सोचें तो कोरोना जैसे कई वायरस हमारे आस-पास जिंदा है, जिनसे सिर्फ स्वस्थ जीवनशैली से ही बचा जा सकता है । युवा पीढ़ी पूरी तरके से पाश्चात्य खान-पान और उनकी जीवनशैली से ही बचा जा सकता है । क्योंकि आज की युवा पीढ़ी पूरी तरीके से पाश्चात्य खान-पान और उनकी जीवनशैली को अपनाने पर आतुर है । आलम यह है कि उनके इस शौक को देखते हुए हर नुक्कड़ पर पीज्जा, बर्गर और फॉस्ट फूड की दुकाने खुल चुकी है । जिनके कारण हमारे युवाओं की इम्यूनिटी लगातार कम उम्र में ही कमज़ोर होती जा रही है । नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ इण्डिया की एक रिर्पोट के मुताबिक हमारे देश में फॉस्टफूड इण्डस्ट्री 18 प्रतिशत वार्षिक सोच रेट के हिसाब से बढ़ रही है । भारतीय परिवार अपनी कुल वार्षिक आय का 21 प्रतिशत फॉस्ट फूड को खरीदने में खर्च कर रहे हैं । इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पहले परिवारों में खाना बनाने और खाने की विधियाँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित की जाती थी लेकिन आज की युवा पीढ़ी से ये फॉस्ट फूड संबंधित खान-पान उनके माता-पिता तक भी पहुँच रहा है ।

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हालांकि 90 के दशक में वैश्वीकरण का हमारे देश में प्रवेश के साथ ही वर्ष 1996 में फॉस्ट फूड की पहली दुकान मैक्डॉनल्ड्स खुली, जिसके आज 300 से ज्यादा दुकानें देश भर में खुल चुकी है । इसके अलावा फॉस्ट फूड के कई अंतर्राष्ट्रीय ब्रॉड देश में शहरों से लेकर गाँव तक अपनी पहुँच बना चुके हैं । इस कारण से विशेषकर युवा पीढ़ी इस खाने के आदि होने के कारण मोटापे, एंग्जाइटी संबंधित लक्ष्णों एवं कई मानसिक विकारों का शिकार होती जा रही है । राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक हमारे देश में हर 4 में से एक बच्चा मोटापे का शिकार है । देश के बच्चों का 5 प्रतिशत मोटापे से ग्रसित हो चुका है । अंतर्राष्ट्रीय लेंसेट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल अस्वास्थ्यकारी आहार के कारण एक लाख के ज्यादा लोग मर रहे हैं । यह सिर्फ मानसिक बिमारियों तक सीमित नहीं बल्कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक इन्हीं गल्त खान-पान के कारण हमारे देश में ही 55 वर्ष से कम उम्र के लगभग तीन लाख लोग दिल का दौरा पड़ने से मर रहे हैं । ये आंकड़े भयानक होने के साथ-साथ हमें सचेत भी कर रहे हैं कि फॉस्ट फूड हमारी युवा पीढ़ी के शारीरिक व मानसिक विकास को अवरूद करने के साथ-साथ एक रोगी पीढ़ी की कतार खड़ी कर रहा है । जिसे संभालने में हमारे देश का स्वास्थ्य प्रबंधन तैयार नहीं है और न ही परिवार ।

हालांकि इसे रोकने के लिए सरकारी प्रयास भी न के बराबर है क्योंकि इन अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड से करोड़ो रूपये की आय उन्हें होती है । लेकिन अभी हाल में ये भारतीय सरकार के प्रयासों से यूनाइटेड नेशन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मिलेट वर्ष 2023 मनाना निश्चित हुआ है । मिलेट यानि की मोटे अनाज ज्वार, बाजरा व रागी आदि जिसे शायद आज की युवा पीढ़ी जानती भी नहीं क्योंकि उत्तर भारत में राज्यस्थान को छोड़कर परिवारों के भोजन का यह हिस्सा है । हालांकि कभी ज्वार, बाजरा, कंगनी व कोढ़ो जैसे मोटे अनाज पंजाब व हरियाणा के चावल व गेहूँ की फसल उगाने से पहले, यही अनाज खेतों में बोये जाते थे । आज कई कारणों से ये अनाज हमारी थाली से गायब है । सरकारों को चाहिए कि यदि वो अपने देश में विश्व की युवा जनसंख्या पर गर्व करती है तो उनके खान-पान व स्वास्थ्य का सर्वप्रथम जिम्मा लें । इस नए वर्ष हर परिवार, सरकारों के साथ मिलकर स्वस्थ समाज बनाने की शपथ लें ।

 

Deepika Sharma

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