

रिटायर्ड मेजर जनरल एके शौरी
श्रीराम की माताश्री कौशल्या का बेटे से बिछड़ने का दर्द हम नहीं समझ सकते।ऐसी माता जो कि एक समय हर्ष से फूली नहीं समा पा रही थी, लेकिन अगले ही पल घोर विशाद् के सागर में घिर गयी। कहाँ तो पुत्र के राज्याभिषेक की बात हो रही थी, चारों ओर उत्सव का माहोल था, खुशियों का मेला लगा हुया था, कि तभी ऐसा समाचार सुनने को मिला कि पैरों से जमीन ही खिसक गयी|
पुत्र से इतना प्रेम और स्नेह कि उससे एक पल भी अलग होना असंभव और सुनने को मिला कि उसे चौदह बरस के लिए वनवास जाना पड़ रहा है!

कौशल्या का दर्द कौन जाने? पति की सबसे पहली पत्नी तो थी लेकिन पूर्ण प्रेम उसे कभी नहीं मिल सका|
पति की दो और पत्नियों के साथ उसे अपना प्यार बाँटना पड़ा और तीसरी ( कैकेयी) सबसे सुंदर व आयु में छोटी होने कारण पति की सबसे प्यारी भी थी. मन में एक आशा जाग उठी थी कि सारी खुशियाँ पुत्र के राज्याभिषेक होने पर पूरी हो जाएँगी, लेकिन अचानक ऐसा वज्रपात हुआ कि चारों ओर अन्धेरा छा गया|

श्रीराम से जुदा होने का विचार इतना भयंकर था कि एक समय कौशल्या ने दशरथ के सामने यह प्रस्ताव भी रखा कि श्रीराम की जगह भरत को राजा बना दिया जाये लेकिन श्रीराम को वनवास न भेजा जाये.
लेकिन नियति को यह मंज़ूर नहीं था. कौशल्या के मन में यह संदेह भी था कि मालूम नहीं भरत के राजा बन जाने पर उसकी अपनी क्या परिस्थितीरहेगी|
उसके मन में अपने पुत्र के साथ अपने अनिश्चित भविष्य की आशंका भी सता रही थी. कौशल्य की इसी मनोस्थिति को वाल्मीकि जी नें रामायण में विस्तार से दर्शया है.
कौशल्या का श्रीराम से आग्रह (अयोध्याकाण्ड, सर्ग २१, शलोक २३, २५, २७, ५२)|
कौशल्या अपनी तरफ से पूरा प्रयास करती है कि श्रीराम वन में जाने से मना कर दें। श्रीराम जब उनसे आज्ञा लेने आते हैं तो कौशल्या एक माँ होने के नाते मना कर देती हैं. लेकिन श्रीराम जब उन्हें धर्म की पालना के बारे में विस्तार से बताते हैं, तब कौशल्या के पास उनसे आग्रह करने के सिवा और कोई चारा भी नहीं है|

इसे बहुत मार्मिक रूप से वाल्मीकि रामायण में दर्शया गया है कौशल्या श्रीराम को सम्भोधित कर के कहती हैं कि पुत्र, अगर तुम पूर्णतया नीतिवान हो, तो हे पुत्र, तुम्हें वही करना चाहिए जो उचित है यहाँ रहते हुए मेरी सेवा करो और उच्चतम नेकी का पालन करो|
जैसे तुम्हारे लिए राजा प्रशंसा के योग्य है, उसी तरह मैं भी. इसलिए मैं तुम्हें जाने की आज्ञा नहीं देती. तुम्हें इस स्थान से वन मंं नहीं जाना चाहिए. अगर मुझे शोक के सागर में डुबो कर तुम वन में चले गए तो मैं प्रण करती हूँ कि मैं मरन्व्रत रख कर अपने प्राण त्याग दूंगी|
तुम्हारा पालन पोषण कर के मैंने अपना कर्तव्य पूरा किया है, इसलिए तुम्हारे प्रति अपने इस स्नेह की वज़ह से मैं तुम्हारी प्रशंसा की वैसी ही हक़दार हूँ जैसे कि तुम्हारे पिता. इसलिए पुत्र, मैं तुम्हें जंगलों में जाने के लिए नहीं कह सकती और मुझे दुखी कर के तुम्हें नहीं जाना चाहिए|
जब बहुत समझाने और जोर देने पर भी श्रीराम नहीं मानते और सीता भी उनके साथ जाने के लिए तैयार हो कर उनसे आज्ञा लेने आती है तो उस समय कौशल्या सीता को मना तो नहीं कर पाती क्योंकि वे जानती हैं कि एक पत्नी को अपने पति के संग ही रहना है, फिर भी वे सीता को उचित परामर्श ज़रूर देती हैं|
जिसे वाल्मीकि रामायण में इस तरह से बताया गया है.
कौशल्या का सीता को उपदेश (अयोध्या कांड, सर्ग ३९, शलोक २०, २१, २२,२३,२४, २५)
कौशल्या कहती है कि ऐसी औरतें जो यद्यपि अपने प्रियेजनों की प्रशंसा पात्र होती है, अपने पति का साथ तब छोड़ दें जब उसके बुरे दिन आ गए हों, संसार में बुरी नज़र से देखी जाती हैं. ऐसी बुरी औरतों की यह आदत होती है कि वे पति संग खुशी मनाती हैं, लेकिन पति का थोड़ा भी खराब समय आ जाये, तो उसका साथ छोड़ देती हैं|
ऐसी औरतें बुरी होती हैं जो आदत से झूठी हों और लालसाओं से बहक जायें, जिनको समझाना मुश्किल हो, दिल से कठोर और पापमयी आदत हो और एक ही क्षण में फिसल जायें.। ऐसी औरतों का दिल ना ही उच्च कुल में जनम से, न उच्च शिक्षा से और न ही अच्छे पुरस्कार व विवाह से बहलता है|
उनका दिल बदलता ही रहता है. जहाँ तक नेक औरतों का सवाल है, वे अच्छे व्यवहार, सच्चाई और अपने से बड़ों के प्रति आदर की भावना रखती हैं और अपने परिवार के नियमों अनुसार रहती हैं।
उनके लिए उनका पति सब से उत्तम व पवित्र है. बेशक तुम मेरे पुत्र श्री राम संग वन में जा रही हो, उसका साथ कभी न छोड़ना. उसके पास चाहे कुछ भी और कितना कम क्यों न हो, वो तुम्हारे लिए देव समान है|
कौशल्या का दशरथ प्रति रोष
जब श्री राम, लक्ष्मण और सीता वन प्रस्थान कर चुके और सुमंत्र ने लौट कर आ कर ऐसा सूचित किया, तो कौशल्या का दशरथ के प्रति क्षोभ और गुस्सा जो कि उनके दिल में भरा हुआ था, एकदम से प्रगट हो गया. उन्होनें दशरथ को खूब खरी खोटी सुनायी, जिसे रामायण में इस तरह से वर्णित किया गया है|
.(अयोध्या काण्ड सर्ग ५१,शलोक २-३, १०, ११, १५, १६, १७, १८, १९, २४, २५) कौशल्या दशरथ को कहती है..
हे राजा, यद्यपि तुम्हारा यश तीनों लोकों में फैला है, और यह बात सभी को भली भांति मालूम है कि तुम बहुत ही दयालु और नेकदिल हो और सभी से बहुत नरमी से बात करते हो, लेकिन तुम ने एक बार भी नहीं सोचा कि तुम्हारे दोनों पुत्र और सीता, जिनका लालन पालन इतने सुखों में हुया है, वन की मुश्किलों को कैसे सहार पायंगे? तुम ने ऐसा अत्यंत क्रूर निर्णय लिया है कि मेरे इतने प्यारे व दुलारे जिनको सुखों में आराम की ज़िन्दगी बितानी थी, बुरी अवस्था में वनों में भटकने के लिए शहर को छोड़ कर जा रहे है|
अगर राम पन्द्रह वर्ष पश्चात अयोध्या वापिस आ भी जाते हैं, तो यह निश्चित नहीं है कि भरत राजगद्दी और खजाना छोड़ देगा। ऐसे में श्रीराम, जो कि सबसे बड़े और योग्य हैं, ऐसी राजगद्दी को अस्वीकार भी कर सकते हैं, जिसे छोटे भाई ने भोगा हो।
जैसे शेर कभी भी दूसरे का किया हुआ शिकार नहीं करता। उसी तरह श्रीराम जो पुरुषों में शेर की तरह हैं, किसी ऐसी वस्तु पर निगाह भी नहीं डालेंगे जिसे किसी दूसरे ने चखा हो. सयाने लोग आहुति के लिए ऐसी कोई वस्तु प्रयोग में नहीं लाते जो पहले ही इस्तेमाल कर ली गयी हो,जैसे कि अन्न , घी, पुदोसा (एक तरह की चावल जो छोटे टुकड़ों में हों और आहुति के लिएअग्नि में प्रयोग किये जाएँ), कुषा और खदिर लकड़ी।
श्री राम कभी भी ऐसी प्रभुसत्ता जिसे भरत ने चखा हो स्वीकार नहीं करेंगे, जो कि ऐसे सोमरस की तरह है, जिसका सारा रस व खुमार पहले ही निकाल लिया गया है। जैसे एक शेर अपनी पूँछ नहीं सहलाने देता ऐसे ही श्रीराम भी अपने साथ बर्ताव नहीं होने देंगे|
एक स्त्री का सबसे बड़ा आश्रय उसका पति होता है, उसके बाद उसका पुत्र व तीसरा उसके नातेदार, चौथा कोइ सहारा नहीं होता, हे राजन! इन तीनों आश्रयों में आप, मेरे पति तो मेरा सहारा बिलकुल भी नहीं हो (क्योंकि आप मेरी सौत के इशारों पर नाच रहे हो), श्री राम को तो आपने वन में भेज दिया है।
मैं वन में नहीं जा सकती क्योंकि मैं आप के बिना नहीं रह सकती। इसलिए, अफ़सोस है कि मुझे आप ने पूर्णतया बर्बाद कर दिया है. कोसल देश के साथ आसपास के अन्य राज्यों को भी आपने बर्बाद कर दिया है। हम सभी, प्रजा व सभासदों को भी आप नें नष्ट कर दिया है|
मैं अपने पुत्र श्रीराम के साथ ही श्रापग्रस्त हो गयी हूँ। नागरिक भी बर्बाद हो गए हैं। केवल आपका पुत्र भरत व पत्नी कैकेयी ही आनंदित हैं।



