लकड़ी आधारित उद्योग के उन्नयन को सुगम बनाया जाएगा

भारत सरकार ने हाल ही में पेश वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में भारत को ‘कार्बन-निरपेक्ष अर्थव्यवस्था’ बनाने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए ‘कृषि वानिकी और निजी वानिकी’ का उपयोग उपयुक्त माध्यमों के रूप में किया है। कृषि वानिकी के तहत ऐसी लघु चक्रीय वृक्ष फसलें या शॉर्ट रोटेशन पेड़ लगाए जाते हैं जो आम तौर पर किसानों द्वारा लगाए जाते हैं। वहीं, दूसरी ओर निजी वानिकी के तहत ऐसी मध्यम एवं दीर्घ चक्रीय वृक्ष फसलें या मीडियम एवं लॉन्ग रोटेशन पेड़ लगाए जाते हैं जो आम तौर पर बागान कंपनियों अथवा व्यक्तियों द्वारा अपनी-अपनी भूमि पर लगाए जाते हैं। भारत कृषि वानिकी के माध्यम से छोटे आकार की लकड़ी के उत्पादन में आत्मनिर्भरता के काफी करीब पहुंच गया है, लेकिन वनों से बड़े आकार की लकड़ी बेहद कम मिलने के कारण भारत अब भी आयातित इमारती लकड़ी या टिम्बर पर बहुत अधिक निर्भर है और एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि किसानों द्वारा इसका उत्पादन करना उनके बस की बात नहीं है। निजी वानिकी को प्रोत्साहित करने वाली भारत सरकार की हालिया पहल से बड़े आकार की लकड़ी के स्थानीय उत्पादन को काफी बढ़ावा मिलने और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के दोहरे उद्देश्य की पूर्ति हो सकती है।
राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के तहत भारत ने यूएनएफसीसीसी के पेरिस समझौते के अंतर्गत वर्ष 2030 तक 2.5 से 3.0 अरब टन का एक अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है। कृषि वानिकी और निजी वानिकी के तहत वृक्षारोपण से न केवल कार्बन पृथक हो जाता है, बल्कि उनकी लकड़ी से तैयार लकड़ी उत्पाद या काष्ठ उत्पाद भी अपना अस्तित्व बरकरार रहने तक सदैव कार्बन का संचय करते रहते हैं। कृषि वानिकी एवं निजी वानिकी पर ध्यान केंद्रित करते हुए ठोस कदम उठाने से एनडीसी के तहत तय किए गए लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है और इसके साथ ही देश के 33 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र को वनों एवं वृक्षों से आच्छादित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ने को भी नई गति मिलेगी, जैसा कि वर्ष 1988 की राष्ट्रीय वन नीति में परिकल्पित है।
2.0 कृषि वानिकी की वर्तमान स्थिति
सत्तर के दशक के उत्तरार्द्ध और अस्सी के दशक के दौरान कुछ राज्यों ने स्व-वित्तपोषित और बाह्य सहायता प्राप्त सामाजिक वानिकी परियोजनाओं को लागू किया था जिनमें कृषि वानिकी का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। लकड़ी आधारित उद्योग ने किसानों के साथ सीधा संपर्क सुनिश्चित करके कच्चे माल की अपनी मांग को पूरा करना शुरू कर दिया। इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट्स (आईएसएफआर) के अनुसार कृषि वानिकी पर ध्यान केंद्रित करने की बदौलत ‘टीओएफ (वनों के बाहर पेड़)’ के अंतर्गत आने वाला कुल क्षेत्र वर्ष 2001 के 5.6% से बढ़कर वर्ष 2021 में भारत के समग्र भौगोलिक क्षेत्र का 8.9% हो गया और वार्षिक लकड़ी उत्पादन 69 से बढ़कर 85 मिलियन घन मीटर हो गया। कृषि वानिकी वृक्षारोपण के तहत आने वाले क्षेत्रों में नियमित रूप से लकड़ी का उत्पादन होगा और इन क्षेत्रों का अस्सी से नब्बे प्रतिशत हिस्सा सदैव हरा-भरा रहेगा जिससे कार्बन को पृथक करने में मदद मिलेगी। चूंकि वन क्षेत्रों से इमारती लकड़ी या टिम्बर की उपलब्धता कम हो गई और खेतों से मिलने वाली लकड़ी पूरी तरह से वनों से मिलने वाली इमारती लकड़ी का विकल्प नहीं बन सकी, इसलिए सरकार ने नब्बे के दशक में इमारती लकड़ी या टिम्बर के आयात को उदार बना दिया। भारत में लकड़ी और लकड़ी आधारित उत्पादों के सतत व्यापार (2021) के अनुसार, 15 मिलियन घन मीटर गोल लकड़ी का आयात किया गया जो कि लगभग 450 अरब रुपये मूल्य के लकड़ी और लकड़ी या काष्ठ उत्पादों के बराबर था।
कच्चे माल की कमी को पूरा करने के लिए कुछ कंपनियों जैसे कि विमको सीडलिंग्स लिमिटेड और आईटीसी, भद्राचलम पेपरबोर्ड लिमिटेड, इत्यादि ने 1980 के दशक में गुणवत्तापूर्ण या बेहतरीन पौधों, वैज्ञानिक तकनीकों के उपयोग और सुनिश्चित वापस खरीद (बायबैक) व्यवस्था के जरिए वृक्ष फसल या पेड़ लगाने को बढ़ावा दिया। इन मॉडलों से लकड़ी आधारित उद्योगों को कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित हो गई है। इसी तरह हरियाणा राज्य, जिसे देश की ‘प्लाईवुड राजधानी’ के रूप में जाना जाता है, में स्थित लकड़ी आधारित उद्योगों का यमुनानगर क्लस्टर वर्तमान में देश के लगभग 40 प्रतिशत प्लाईवुड के उत्पादन की क्षमता रखता है। यह क्लस्टर कृषि लकड़ी या खेतों से मिलने वाली लकड़ी के लिए सबसे बड़ा बाजार है और इसने किसानों, मजदूरों, ठेकेदारों, ट्रांसपोर्टरों, व्यापारियों एवं उद्योगपतियों सहित सभी हितधारकों को लाभान्वित किया है। अत: कृषि वानिकी और लकड़ी आधारित उद्योग के एकीकृत विकास से लकड़ी या काष्ठ क्षेत्र का तेज विकास सुनिश्चित होगा।
3.0 कृषि वानिकी क्षेत्र के विकास में आनेवाली समस्याएं और आवश्यक कार्रवाई
3.1 किसान: किसानों को मुख्य रूप से पेड़ों की कटाई एवं लकड़ी के अंतर-राज्यीय परिवहन में आने वाली बाधाओं; नर्सरी में खराब गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री की उपलब्धता; अनुसंधान एवं विकास की गतिविधियों से वंचित विस्तार संबंधी अपर्याप्त सेवाएं; कटाई की लंबी अवधि के कारण लकड़ी की कीमतों में व्यापक उतार-चढ़ाव; और कार्बन उत्सर्जन से मुक्ति के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं होने की वजह से परेशानी का सामना करना पड़ता है। उपरोक्त समस्याओं को हल करने के लिए सबसे पहले, वृक्षारोपण के पंजीकरण, पेड़ों की कटाई और लकड़ी की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए एक ऑनलाइन प्रणाली विकसित करके पेड़ों की कटाई और लकड़ी के अंतर-राज्यीय परिवहन के नियमों में अखिल भारतीय स्तर पर संशोधन किया जाना चाहिए। दूसरा, गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री प्रदान करने के लिए निजी नर्सरी को मान्यता प्रदान करने से संबंधित एक रूपरेखा तय होनी चाहिए। तीसरा, प्रभावी नेटवर्किंग से लैस लकड़ी के बाजार स्थापित किए जा सकते हैं। चौथा, आईटीसी, विमको आदि के सहजीवी मॉडल को बढ़ावा दिया जा सकता है। पांचवां, कार्बन संबंधी व्यापार को सुगम बनाया जा सकता है और छठा, अनुसंधान एवं विकास की दिशा में गहन प्रयास किए जा सकते हैं।
3.2 लकड़ी आधारित उद्योग: लकड़ी आधारित उद्योग मुख्य रूप से जटिल लाइसेंसिंग नीति के कारण प्रभावित होते हैं क्योंकि नए लाइसेंस/इकाइयों के विस्तार से संबंधित आदेश लकड़ी की बढ़ी हुई उपलब्धता; कृषि उपज के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाली महंगी कृषि लकड़ी या खेत से मिलने वाली लकड़ी; गैर-प्रमाणित कृषि लकड़ी और आयातित लकड़ी के उत्पादों के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा के बारे में आकलन करने के बाद ही जारी किए जाते हैं। उपरोक्त समस्याओं को हल करने के लिए सबसे पहले, लकड़ी आधारित उद्योग को खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के बराबर का दर्जा दिया जा सकता है। दूसरा, दीर्घकालिक अवधि में ठोस लकड़ी की मांग को कम करने के लिए मिश्रित लकड़ी के पैनलों को बढ़ावा दिया जा सकता है। तीसरा, लकड़ी आधारित उद्योग के उन्नयन को सुगम बनाया जा सकता है और चौथा, कुशल श्रमशक्ति के लिए व्यापक प्रशिक्षण एवं विकास कार्यक्रम की व्यवस्था की जा सकती है।



